3 घंटे पहलेलेखक: शशांक शुक्ला
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हमारी छोटी-छोटी आदतें, जिन्हें हम हल्के में लेते हैं, अचानक हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाती हैं। हमें इसका एहसास भी नहीं होता है। यह एक ऐसी मानसिक और शारीरिक स्थिति है, जो हमें किसी खास आदत या नशे पर पूरी तरह से निर्भर बना देती है।
चाहे वह शराब, तंबाकू हो या फिर सोशल मीडिया और इंटरनेट की लत। एडिक्शन का रूप अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इसका असर एक ही है। यह हमारी मेंटल और फिजिकल हेल्थ को धीरे-धीरे दीमक की तरह खा जाता है।
क्या आपने कभी महसूस किया है कि किसी बुरी आदत के कारण आपकी जिंदगी पर गहरा असर पड़ रहा है, लेकिन फिर भी आप उसे छोड़ नहीं पा रहे हैं? यही एडिक्शन का जाल है। यह धीरे-धीरे हमारे मस्तिष्क को अपने कब्जे में ले लेता है।
आज रिलेशनशिप में हम जानेंगे कि-
- नशे की लत ब्रेन को कैसे हाईजैक करती है?
- इससे उबरने के उपाय क्या हो सकते हैं?
क्या आप भी हैं एडिक्शन के शिकार?
हम सभी के लिए नशे की लत को पहचानना उतना मुश्किल नहीं है, जितना स्वीकार करना है। अक्सर समाज में इसके बारे में बात करने पर शर्मिंदगी महसूस होती है। हालांकि, इस समस्या को स्वीकार करना ही ठीक होने की दिशा में पहला कदम है।
आइए, कुछ सवालों के जरिए नशे की लत को पहचानने की कोशिश करें। खुद से यह सवाल करें और जवाब ‘हां’ में हो तो आपको अपने बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
अगर इनमें से किसी सवाल का उत्तर आपने ‘हां’ में दिया है, तो आपको संभल जाने की जरूरत है। आप बिना संकोच किसी एक्सपर्ट की मदद ले सकते हैं।
कैसे काम करती है नशे की लत?
नशा ब्रेन के रिवॉर्ड सिस्टम और इमोशनल रिएक्शंस को प्रभावित करता है। ब्रेन के चार हिस्से नशे की लत में गहराई से शामिल होते हैं। आइए इसे ग्राफिक के माध्यम से समझते हैं कि यह कैसे काम करता है।
आइए ग्राफिक के पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि नशे की लत ब्रेन को कैसे प्रभावित करती है।
न्यूक्लियस एक्यूम्बेंस
- कार्य- यह ब्रेन के रिवॉर्ड सिस्टम के सेंटर के रूप में काम करता है। जब कोई व्यक्ति ड्रग्स, शराब या कोई और नशा करता है, इससे डोपामाइन हॉर्मोन रिलीज होता है, जो खुशी का एहसास देता है।
- नशे का प्रभाव- बार-बार डोपामाइन का स्तर बढ़ने से ब्रेन के लिए यह स्तर सामान्य हो जाता है। ऐसे में खुशी पाने के लिए ज्यादा नशे की जरूरत होती है। यही नशे की लत का कारण है।
- उदाहरण- जैसे ड्रग्स लेने के बाद व्यक्ति और अधिक ड्रग्स पाने के लिए पागलपन की हद तक काम करता है।
एमिग्डला
- कार्य- यह इमोशंस, विशेष रूप से डर, तनाव और गुस्से को नियंत्रित करता है।
- नशे का प्रभाव- नशा तनाव या भावनात्मक दर्द को कम करता है। ऐसे में व्यक्ति इसे राहत पाने के साधन के रूप में उपयोग करने लगता है।
- उदाहरण- तनावपूर्ण परिस्थितियों में लोग अक्सर शराब, ड्रग्स या किसी अन्य नशे का सहारा लेते हैं। धीरे-धीरे यह आदत बन जाती है।
हिप्पोकैम्पस
- कार्य- यह यादों और अनुभवों को स्टोर करता है।
- नशे का प्रभाव- नशे से जुड़े सुखद अनुभव दिमाग को याद रहते हैं। इसी वजह से व्यक्ति बार-बार उस अनुभव को पाना चाहता है।
- उदाहरण- अगर व्यक्ति किसी पार्टी में नशे का सेवन करता है, तो उस पार्टी में उसे नशे की इच्छा हो सकती है।
सेरेब्रल कॉर्टेक्स
- कार्य- यह निर्णय लेने और तर्क करने में मदद करता है।
- नशे का प्रभाव- नशा मस्तिष्क के इस भाग को कमजोर कर देता है, जिससे व्यक्ति सही और गलत का निर्णय नहीं ले पाता है।
- उदाहरण- नशे में डूबा व्यक्ति यह समझने में असमर्थ हो जाता है कि यह आदत उसकी सेहत और जीवन को नुकसान पहुंचा रही है।
क्या है टॉलरेंस?
जब आप किसी नशे का नियमित सेवन करते हैं, तो शरीर और दिमाग धीरे-धीरे उस नशे का आदी हो जाता है। शुरुआत में जो छोटी मात्रा आपको राहत देती थी, अब इतनी असरदार नहीं होती है।
इस वजह से आपको वही खुशी पाने के लिए अधिक नशे की जरूरत पड़ती है। यह सिर्फ आपकी आदत नहीं, बल्कि आपकी मानसिक और शारीरिक स्थिति को भी बदल देता है।
क्या आपने कभी महसूस किया है कि पहले एक ग्लास शराब या सिगरेट के एक कश से आपको सुकून मिलता था, वही अब अधूरा सा लगता है? यह उस टॉलरेंस का असर है, जो आपके शरीर में विकसित हो चुका है। इसे समझना और समय रहते पहचानना सबसे जरूरी कदम है।
हम कैसे नशे के वश में जाते हैं?
लगातार नशे की वजह से दिमाग का रिवॉर्ड सिस्टम काम करना बंद कर देता है। नशे से भी खुशी मिलना बंद हो जाती है। इसके बावजूद नशे की इच्छा बनी रहती है। इसकी वजह यह है कि दिमाग पुराने अनुभवों को याद रखता है। जैसे ही पुरानी यादें ताजा होती हैं, फिर से नशे की इच्छा होती है।
यह लालसा नशे की लत को और बढ़ाती है। यह इतनी मजबूत होती है कि व्यक्ति कई सालों बाद पुरानी आदतों की ओर खिंचा चला जाता है। अगर कोई व्यक्ति पहले शराब का नशा करता रहा हो, तो बोतल देख कर फिर से पीने की इच्छा हो सकती है।
कंडीशंड लर्निंग यह समझने में मदद करती है कि नशे की लत से उबरने के बाद लोग दोबारा उसी लत की ओर जा सकते हैं।
नशे की लत से कैसे पाएं छुटकारा?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि नशे की लत एक मानसिक रोग है। यह मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और व्यवहार को प्रभावित करता है। इसे केवल इच्छाशक्ति से नहीं छोड़ा जा सकता है। नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए सही समय पर मनोचिकित्सक की मदद और परामर्श आवश्यक है, जिससे नशे की आदत से पीड़ित व्यक्ति उचित उपचार और सहायक वातावरण के माध्यम से स्वस्थ जीवन की ओर लौट सके।
नशे से छुटकारा पाना लंबी और कठिन प्रक्रिया है। इसके इलाज के साथ हमें सकारात्मक बदलाव लाने की जरूरत है। हम कुछ ऐसे कदमों के बारे में बात करते हैं, जो नशे से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं।
बदलाव धीरे-धीरे होता है, लेकिन लगातार प्रयास और आत्मविश्वास के साथ हम नशे से पूरी तरह मुक्त हो सकते हैं। एक स्वस्थ, खुशहाल जीवन जी सकते हैं। इस प्रक्रिया में धैर्य के साथ निरंतरता महत्वपूर्ण है।