55 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल
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आमतौर पर भारत में पेरेंट्स अपने छोटे बच्चों के साथ एक ही बिस्तर पर सोते हैं। इसे ‘को-स्लीपिंग’ कहा जाता है। इससे पेरेंट्स और बच्चे का रिश्ता मजबूत होता है। हालांकि अभी इसके फायदे और नुकसान दोनों पर बहस जारी है।
दुनिया के जाने-माने एंथ्रोपोलॉजिस्ट डॉ. जेम्स जे. मैकेना ने को-स्लीपिंग पर एक किताब लिखी है। इसका नाम ‘सेफ इन्फेंट स्लीप: एक्सपर्ट आंसर्स टू योर को-स्लीपिंग क्वेश्चन्स’ है। डॉ. मैकेना की किताब इस बारे में जानकारी देती है कि कैसे को-स्लीपिंग बच्चे के विकास और पेरेंट्स की भलाई दोनों के लिए बेहद जरूरी है।
डॉ. मैकेना ऑस्ट्रेलिया की ‘नोट्रे डेम यूनिवर्सिटी’ के ‘मदर-बेबी बिहेवियरल स्लीप लेबोरेटरी‘ के डायरेक्टर भी हैं। उन्होंने अपना करियर यह समझने में समर्पित किया है कि जब बच्चे और पेरेंट्स एक साथ या अलग सोते हैं तो इसका उन पर क्या प्रभाव पड़ता है। उनके मुताबिक, पेरेंट्स को बच्चे के साथ सोना चाहिए, लेकिन सुरक्षित तरीके से।
आज रिलेशनशिप कॉलम में हम को-स्लीपिंग के बारे में विस्तार से बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- को-स्लीपिंग के क्या फायदे हैं?
- बच्चे को किस उम्र तक साथ सुलाना चाहिए?
को-स्लीपिंग क्या है?
जब पेरेंट्स अपने छोटे बच्चे के साथ एक ही बिस्तर पर या एक ही कमरे में सोते हैं तो इसे को-स्लीपिंग कहते हैं। यह बच्चों की देखभाल का एक पारंपरिक तरीका है। जब बच्चा पैदा होता है तो उसके लिए मां का स्पर्श बहुत फायदेमंद होता है। इसीलिए प्री-मैच्योर बेबी व कम वजन वाले बच्चों की देखभाल के लिए कंगारू केयर की सलाह दी जाती है।
इसमें मां और बच्चे को स्किन-टू-स्किन संपर्क में रखा जाता है। इससे बच्चे और मां के बीच का रिश्ता मजबूत होता है। साथ ही बच्चे की हार्ट रेट, ब्रीदिंग रेट और वजन में सुधार होता है। को-स्लीपिंग तीन तरह की होती है।
बेड-शेयरिंग: इसमें पेरेंट्स और बच्चा एक ही बिस्तर पर साथ सोते हैं।
रूम-शेयरिंग: इसमें पेरेंट्स और बच्चा एक ही कमरे में सोते हैं, लेकिन दोनों का बिस्तर अलग होता है।
को-स्लीपिंग कॉम्बिनेशन: इसमें पेरेंट्स और बच्चा कुछ समय के लिए एक साथ सोते हैं और फिर अलग हो जाते हैं।

बच्चे को किस उम्र तक साथ सुलाना सही
बच्चे को साथ सुलाने को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। इसके लिए कोई उम्र निर्धारित नहीं है। हालांकि जन्म से 6 महीने तक माता-पिता को बच्चे के साथ जरूर सोना चाहिए क्योंकि इस दौरान बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग और केयर की ज्यादा जरूरत होती है।
आमतौर पर 1 से 2 साल की उम्र तक बच्चे को पेरेंट्स के साथ सोने में कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अलग कमरे में सोने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, ताकि वे स्वावलंबी हो सकें।
हालांकि हर बच्चा अलग होता है। कुछ बच्चे जल्दी स्वतंत्र हो जाते हैं, जबकि कुछ बच्चों को अधिक समय लगता है। इसलिए अपने बच्चे की जरूरतों को समझें और उसी के अनुसार निर्णय लें।
को-स्लीपिंग के फायदे
को-स्लीपिंग के कई फायदे हैं, जो बच्चे और पेरेंट्स दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-

आइए अब ऊपर दिए पॉइंट्स के बारे में विस्तार से बात करते हैं।
बच्चे को आती बेहतर नींद
जब बच्चा अपने पेरेंट्स के करीब होता है तो वह अधिक सुरक्षित महसूस करता है। इससे उसको अच्छी और गहरी नींद आती है। पेरेंट्स की मौजूदगी से बच्चे को रात में डर लगने या अकेलेपन का अहसास नहीं होता है। इससे उसकी नींद भी बार-बार नहीं टूटती है।
रिश्ता होता मजबूत
एक साथ सोने से माता-पिता और बच्चे के बीच फिजिकल और इमोशनल जुड़ाव बढ़ता है। यह जुड़ाव बच्चे के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे उसे अपने पेरेंट्स से प्यार और सुरक्षा का अहसास होता है।
ब्रेस्टफीडिंग में आसानी
एक साथ सोने से रात में बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने के लिए मां को बार-बार उठने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे वह और बेबी दोनों आराम से सो पाते हैं और ब्रेस्ट फीडिंग की फ्रीक्वेंसी भी मेंटेन रहती है।
बच्चे को मिलता इमोशनल सपोर्ट
पेरेंट्स के करीब होने से बच्चे को सुरक्षित महसूस होता है, खासकर रात के समय जब उसे डर लग सकता है। माता-पिता का स्पर्श और उनकी मौजूदगी बच्चे को इमोशनल सपोर्ट देती है। इससे वह अधिक आत्मविश्वास महसूस करता है।
तनाव होता कम
बच्चे के साथ सोने से पेरेंट्स को उसकी देखभाल करने में आसानी होती है, जिससे उनका तनाव कम होता है। बच्चे को भी अपने माता-पिता के करीब होने से सुकून मिलता है। साथ ही उसे भी किसी भी प्रकार का तनाव नहीं होता है।
देखभाल करने में होती आसानी
बच्चे खासकर नवजात शिशुओं के साथ सोने से पेरेंट्स को उसकी हर गतिविधि पर नजर रखने में आसानी होती है। वे बच्चे की सांस लेने, हार्ट बीट और अन्य जरूरतों की निगरानी कर सकते हैं।

बच्चे को अकेले सुलाना कितना सही
50 के दशक में अमेरिका के जाने-माने पीडियाट्रिशियन डॉ. बेंजामिन स्पॉक ने एक किताब लिखी थी। इसका नाम ‘द कॉमन सेंस बुक ऑफ बेबी एंड चाइल्ड केयर’ है। ये किताब बीसवीं सदी की सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में से एक है।
इस किताब में डॉ. स्पॉक ने सुझाव दिया है कि नवजात शिशुओं को अकेले सोने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। हालांकि इस किताब के पब्लिश होने के कुछ सालों बाद तमाम मनोवैज्ञानिकों और पीडियाट्रिशियन ने उनके तर्क को खारिज किया। उन्होंने प्रामाणिक रूप से बच्चे के साथ पेरेंट्स के सोने के महत्व को बताया।
बच्चे के साथ सोने के संभावित नुकसान
कुछ मामलों में नवजात शिशु के साथ सोना संभावित रूप से खतरनाक हो सकता है। कई बार बच्चे भारी बिस्तर या एडल्ट शरीर से खुद को बाहर नहीं निकाल पाते हैं। इससे उनके फंसने, दम घुटने और सडेन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) का खतरा बढ़ जाता है।
इसके अलावा को-स्लीपिंग में थोड़ी सी असावधानी शिशु के लिए खतरनाक हो सकती है। उदाहरण के लिए पेरेंट्स के पास सोते समय बच्चे के ऊपर दबाव आ सकता है या अन्य खतरे हो सकते हैं।
को-स्लीपिंग से बच्चे को स्वावलंबी होने में समय लग सकता है। इसके कारण बच्चे को आत्मनिर्भरता और आत्मसुरक्षा सीखने में मुश्किल हो सकती है। बच्चों के साथ सोने से पेरेंट्स और बच्चे दोनों को आराम से सोने में परेशानी हो सकती है।