रुचिर शर्मा का कॉलम:  चीन के बाजार में निवेशक फिर से लौटकर आने लगे हैं
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रुचिर शर्मा का कॉलम: चीन के बाजार में निवेशक फिर से लौटकर आने लगे हैं

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5 घंटे पहले

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रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर - Dainik Bhaskar

रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर

इस साल चीनी शेयरों में जोरदार उछाल आए हैं। निवेशक पूछ रहे हैं कि क्या वह आउटसाइडर्स के लिए पर्याप्त सुरक्षित है? इसका उत्तर हां है, और यह हमेशा से था। इस दशक में कई कारणों से चीनी शेयरों में भारी गिरावट आई थी और कई विदेशी निवेशकों ने दुनिया के इस दूसरे सबसे बड़े बाजार को ‘निवेश के लायक नहीं’ कहकर खारिज कर दिया था।

यह अपने आपमें एक बेतुकी बात थी। चीन में अब भी कुछ बुनियादी बदलाव नहीं हुआ है। कोई बड़ा आर्थिक पुनरुद्धार नहीं हो रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था- जो कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है- अभी भी बुजुर्ग होती वर्कफोर्स और कर्ज के बोझ तले दबी हुई है। इससे उसकी विकास दर 3 प्रतिशत से कम हो सकती है, जो कि बीजिंग के आधिकारिक लक्ष्य से काफी नीचे है।

तो फिर बदलाव कहां हुआ है? सेंटीमेंट्स में। इसे हाल ही में आई इस खबर से बल मिला है कि डीपसीक अमेरिकी एआई की तुलना में एक किफायती चीनी विकल्प प्रदान करता है। निवेशक फिर से चीन को उस रूप में देख रहे हैं, जैसा कि वह हमेशा से रहा है : एक अस्पष्ट और कठिन बाजार, लेकिन इतना बड़ा कि उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। और बेहतरीन इनोवेशन और अवसर पैदा करने में सक्षम भी।

पिछले साल चीनी बाजार में तेजी शुरू हुई थी, क्योंकि सरकार ने मार्केट को प्रोत्साहन देने वाले कुछ बड़े उपायों को आजमाना शुरू किया। इसके बावजूद अधिकतर विदेशी निवेशक चीन की घटती विकास दर और हुकूमत की रेगुलेटरी सख्ती से घबराकर किनारे पर ही बैठे रहे। फिर डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में चुनाव हुआ, जिसने इस विश्वास को और मजबूत किया कि चीन का बाजार निवेश के लिए बहुत जोखिम भरा हो गया है।

लेकिन ट्रम्प चीन के मामले में उम्मीद से ज्यादा नरम साबित हो रहे हैं। और उन्होंने जो टैरिफ दबाव बनाया है, वह शी जिनपिंग को अपने देश को निवेश-योग्य बनाने के लिए प्रेरित ही कर रहा है। शी निजी क्षेत्र को बढ़ावा देकर उसकी भावनाओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले हफ्ते उन्होंने बिजनेस-लीडर्स के साथ एक हाई-प्रोफाइल मीटिंग की और कहा कि चीन में ‘पहले अमीर बनने वालों का’ स्वागत है।

फिर भू-राजनीतिक जोखिम भी कम हो रहे हैं। सबसे बड़ा डर रूसी-उदाहरण का था। बीजिंग अगर ताइवान पर दावा ठोंकता रहता तो वैश्विक बाजारों से खुद को वैसे ही बहिष्कृत करवा लेता, जैसा कि मॉस्को के साथ यूक्रेन पर धावा बोलने के बाद किया गया था।

चूंकि चीन रूस की तुलना में ज्यादा देशों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक-सहयोगी है, इसलिए भी इस जोखिम को हमेशा थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता था। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि ट्रम्प-राज में अगर चीन ताइवान पर किसी प्रकार की कार्रवाई करता है तो उस पर प्रतिबंध लगाए जाने की संभावनाएं कम ही हैं।

निवेशक यह भी मान रहे हैं कि चीन में काम करना अब सस्ता हो गया है। 2025 में यह दुनिया के सबसे सस्ते प्रमुख बाजारों में से एक बन गया है, जिसमें अमेरिका और भारत के औसत मूल्यांकन के आधे पर स्टॉक का कारोबार हो रहा है।

चीन में आज 250 से अधिक ऐसी कंपनियां हैं, जिनका मार्केट-कैप 1 अरब डॉलर से अधिक है और 10 प्रतिशत से अधिक का फ्री कैश-फ्लो यील्ड है। अमेरिका में इस तरह की कंपनियां 150 से भी कम हैं। उन 250 कंपनियों में से केवल 20 ही टेक को छोड़कर दूसरे सेक्टर्स में हैं।

अब जैसे-जैसे चीन के बारे में नजरिया बदल रहा है, वहां पूंजी का प्रवाह भी बढ़ने लगा है। चीनी पूंजीवाद अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी है। चीन में सूचीबद्ध कंपनियों में लार्ज कैप का हिस्सा कम है, जिससे नए लोगों के लिए अधिक स्पेस है।

चीन में 11 प्रमुख क्षेत्रों में से 7 अमेरिका की तुलना में कम केंद्रित हैं, जिसका अर्थ है कि शीर्ष 5 व्यवसाय प्रत्येक क्षेत्र के मार्केट-कैप का एक छोटा हिस्सा ही बनाते हैं। विशेष रूप से चीन का टेक-सेक्टर बहुत कम केंद्रित है, इससे डीपसीक जैसे प्राइवेट अपस्टार्ट दिग्गजों के कम वर्चस्व वाले वातावरण में उभर सकते हैं।

बेशक, जब तक जोखिम बने रहेंगे- जिसमें मनमाने ढंग से राज्यसत्ता के हस्तक्षेप का खतरा भी शामिल है- चीनी शेयर डिस्काउंट पर बिकेंगे। और बिकना भी चाहिए। मुद्दा बस इतना है कि डिस्काउंट अब बहुत अधिक बढ़ गया है। निवेशकों द्वारा चीनी डिस्काउंट की पुनर्गणना करने और राज्यसत्ता के कम हस्तक्षेप के इस दौर में प्रवेश करने के साथ ही तेजी जारी रह सकती है।

ट्रम्प चीन के मामले में उम्मीद से ज्यादा नरम साबित हो रहे हैं। उन्होंने जो टैरिफ दबाव बनाया है, वह शी जिनपिंग को अपने देश को निवेश-योग्य बनाने के लिए प्रेरित ही कर रहा है। चीन अब ताइवान को लेकर भी कम अंदेशे में है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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