विराग गुप्ता का कॉलम:  एआई के दौर में हो सरकारी नौकरियों में भर्ती का रिव्यू
टिपण्णी

विराग गुप्ता का कॉलम: एआई के दौर में हो सरकारी नौकरियों में भर्ती का रिव्यू

Spread the love


  • Hindi News
  • Opinion
  • Virag Gupta’s Column Recruitment In Government Jobs Should Be Reviewed In The Era Of AI

6 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील - Dainik Bhaskar

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील

25 लाख से ज्यादा काबिल वकीलों वाले हमारे देश की जिला अदालतों में एक चौथाई और हाईकोर्टों में एक तिहाई जजों के पद खाली हैं। नियमित भर्ती के बजाय हाईकोर्टों में तदर्थ जजों की अल्पकालिक नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। इससे दो बिंदु सामने आते हैं।

पहला, नियमित भर्ती के बजाय संविदा या आउटसोर्सिंग के शॉर्टकट से सिस्टम चलाना आसान है। दूसरा, रिक्त पदों पर भर्ती के बगैर नए पद सृजित करने का क्या औचित्य है? आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार 2018 से 2022 के बीच चार वर्षों में 8 करोड़ रोजगारों का सृजन हुआ है। लेकिन इंडिया एम्प्लाॅयमेंट रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में बेरोजगार लोगों में 83 फीसदी युवा हैं, जो वर्ष 2000 में सिर्फ 35.2 फीसदी थे। इस बार के बजट में रोजगार से जुड़ी 5 योजनाओं में 2 लाख करोड़ रुपए के आवंटन से 4.1 करोड़ युवाओं को फायदा मिलने का दावा किया जा रहा है। रोजगार से जुड़े 4 मुद्दों पर विमर्श जरूरी है।

1. वेतन आयोग : देश में लगभग 100 करोड़ लोगों की वर्कफोर्स है, जिनमें लगभग 2 करोड़ लोग सरकारी नौकरी का हिस्सा हैं। चीन में 4.6 और अमेरिका में 6.9 फीसदी लोग सरकारी नौकरी में हैं। सिर्फ केंद्र सरकार इस साल वेतन के मद में 1.66 लाख करोड़ और पेंशन में 2.77 लाख करोड़ खर्च करेगी।

दो साल बाद नए वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर केंद्र सरकार में सचिव पद से रिटायर अधिकारी को 2.50 लाख रुपए महीने से ज्यादा की पेंशन मिल सकती है। दूसरी तरफ आउटसोर्सिंग में पूरी मेहनत से काम कर रहे कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन भी नहींं मिल रहा। दिल्ली में एमसीडी और दूसरे राज्यों में संविदा कर्मियों को नियमित सरकारी नौकरी का दर्जा देना सरकारों के लिए अब टेढ़ी खीर हो गया है।

2. संविदा : एड-हॉक जजों को नियमित जजों की तरह वेतन-भत्ते और सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन संविदा में नियुक्त अधिकांश कर्मियों को न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुविधाओं का लाभ नहींं मिलता। लेबर फोर्स सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत की वर्क फोर्स में 20.9 फीसदी लोग वेतनभोगी हैं। लेकिन उनमें से दो तिहाई को 20 हजार रुपए महीने से कम मिलता है।

हरियाणा में 15 हजार रुपए महीने पर संविदा सफाई कर्मचारियों की भर्ती के लिए 46 हजार ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं ने आवेदन किया है। कुम्भ के सफल आयोजन के बाद योगी सरकार ने सफाई कर्मियों के वेतन को 11 हजार से बढ़ाकर 16 हजार महीने का वायदा किया है, जो न्यूनतम वेतन के कानूनी मापदंड से कम है।

3. एआई : मुख्य सचिव रैंक के एक पूर्व अधिकारी की सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार लोगों के पास काम नहींं है, काम के लिए योग्य लोग नहींं हैं और काम में रखे गए लोग किसी काम के नहींं हैं! रिपोर्टों के मुताबिक 53 फीसदी इंजीनियर किसी भी इंडस्ट्री में रोजगार के योग्य नहींं हैं।

कुशल इंजीनियर उपलब्ध नहींं होने से पिछले साल टीसीएस में 80 हजार वैकेंसीज़ में भर्ती नहीं हो सकी। तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में 10 हजार करोड़ से इंडिया एआई मिशन पर काम हो रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार एआई से 22 फीसदी नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं। एआई के आगमन के बाद बड़े पैमाने पर स्टार्टअप और टेक कम्पनियां लाखों लोगों की छंटनी कर रही हैं। कुशल कामगारों के अभाव में जीडीपी में बढ़ोतरी के बावजूद रोजगार का संकट बढ़ रहा है।

4. विनियम आयोग : भारत में नौकरशाही को जंग लगे जहाज की ब्रिटिश विरासत कहा जाता है। केंद्र ने 1500 से ज्यादा पुराने कानूनों को रद्द करने के साथ ही जन-विश्वास कानून से 183 छोटे अपराधों को गैर-आपराधिक घोषित किया है। प्रधानमंत्री ने विनियमन आयोग के गठन करने की बात कही है।

सरकारी नौकरियों में कई दशक पुराने काम के आधार पर वैकेंसी का निर्धारण होने से अराजकता बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ में 36 करोड़ रु. में खोले गए लगभग 100 स्कूलों में भर्ती शिक्षक ही भृत्य का काम भी कर रहे हैं। बिहार में चुनाव के पहले 12 लाख लोगों को सरकारी नौकरी और सवा लाख शिक्षकों को नियुक्ति-पत्र देने का वादा हो रहा है।

सरकारी नौकरियों में आनन-फानन में गलत तरीके से होने वाली भर्ती से मुकदमेबाजी के साथ ही लालफीताशाही का बोझ बढ़ता है। फिर अकुशल और अधिकता वाले कर्मचारियों की विदाई के लिए वीआरएस योजना पर सरकार अरबों खर्च करती है। भारी-भरकम और अकुशल नौकरशाही के साथ ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का संतुलन बनाना बड़ी चुनौती है। इन विरोधाभासों से गवर्नेंस की गाड़ी पटरी से उतर सकती है।

सरकारी नौकरियों में आनन-फानन में गलत तरीके से होने वाली भर्ती से मुकदमेबाजी सहित लालफीताशाही का बोझ बढ़ता है। अकुशल और अधिकता वाले कर्मचारियों की विदाई के लिए वीआरएस पर भी अरबों खर्च होते हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *