शेखर गुप्ता का कॉलम:  बजट की इस महत्वपूर्ण बात पर कम ध्यान ​गया है
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शेखर गुप्ता का कॉलम: बजट की इस महत्वपूर्ण बात पर कम ध्यान ​गया है

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4 घंटे पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ - Dainik Bhaskar

शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

इस बार बजट का सबसे साहसी और सकारात्मक बयान राजनीति और रणनीतिक मामलों के क्षेत्र से संबंध रखता है। यह है परमाणु ऊर्जा एक्ट और ‘सिविल लायबिलिटी ऑन न्यूक्लियर डैमेज एक्ट’ में संशोधन का इरादा।

2047 तक 100 गीगावाॅट (1 गीगावाॅट यानी 1,000 मेगावाॅट) परमाणु बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के बाद इस लक्ष्य में फटाफट संशोधन किया गया है। अगर ट्रम्प लेन-देन पर जोर देते हैं तब भारत उनसे ‘लेने’ के बदले उन्हें क्या ‘देने’ की पेशकश कर सकता है?

बड़ी परमाणु खरीद (वेस्टिंगहाउस बिजली कंपनी को याद कीजिए, जो कार्बन मुक्त ऊर्जा के लिए परमाणु टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराती है) जादुई नतीजे दे सकती है। इसके लिए भारत को 2010 में यूपीए सरकार द्वारा पारित ‘परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम’ (सीएलएनडीए) नामक कानून में संशोधन करना पड़ेगा, जो अपने जन्म के साथ ही मरणासन्न हो गया था।

इसमें यह शर्त भारतीय जनता पार्टी के दबाव में ही जोड़ी गई थी कि परमाणु हादसे की स्थिति में ऑपरेटर मुआवजे का दावा करने के लिए सप्लायर पर मुकदमा चला सकता है। सिविल न्यूक्लियर संधि के मामले पर विश्वास मत में हारने के बाद भाजपा ने यूपीए (और भारत) को स्वच्छ ऊर्जा के लिए संधि करने से रोक दिया था।

यह कानून आज जिस रूप में है, वह परमाणु ऊर्जा के लिए पूरक मुआवजे से संबंधित समझौते (सीएससी) का उल्लंघन करता है। यह ऑपरेटर की जवाबदेही को सीमित करता है और सप्लायर को मुक्त करता है। उस परमाणु संधि के मामले में हार को लेकर भाजपा की खीझ को इत्तेफाक से भोपाल गैस हादसे पर सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले के रूप में सटीक समय पर अनुकूल माहौल मिल गया। इसने जवाबदेही वाले मुद्दे को वापस जनमत में उभार दिया। वामपंथी और दक्षिणपंथी खेमे पर्यावरणवादियों के साथ जुड़ गए और जवाबदेही वाले कानून का गला घोंट दिया गया।

भाजपा आज अगर उस कानून के ‘विषदंत’ निकाल दे, तो इससे अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और सबसे ऊपर रणनीति के मामलों में लाभ ही हासिल होंगे। यह वैसा ही स्वागतयोग्य बदलाव होगा, जैसा मोदी सरकार ने सिविल परमाणु संधि को अपनाकर और अमेरिका की ओर रणनीतिक झुकाव दर्ज करा कर किया था।

परमाणु ऊर्जा एक्ट में संशोधन का अर्थ होगा परमाणु बिजली उत्पादन का मामला बिजली मंत्रालय को सौंपना। अगर मोदी सरकार ये संशोधन करवा लेती है तो इसका उसे घरेलू राजनीति में फायदा ही मिलेगा। आंध्र प्रदेश ने 6,600 मेगावाॅट वाले एक परमाणु बिजली संयंत्र के लिए 2067 एकड़ जमीन आवंटित भी कर दी है।

वह दौर बीत चुका, जब बजट राजनीतिक अर्थनीति, खासकर आर्थिक सुधारों पर सरकार के नए विचारों को रेखांकित किया करते थे। इसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि राजनीतिक अर्थनीति अब राजनीतिक नेतृत्व यानी नरेंद्र मोदी के हाथों में है। दूसरी यह कि जब बजट में की जाने वाली घोषणाओं की बात आती है तो उनको लेकर जनमानस में पहले ही काफी संदेह व्याप्त हो चुका है।

पिछले 11 वर्षों में आर्थिक सुधारों की बड़ी घोषणाएं बजट में नहीं बल्कि महामारी के दौरान कई प्रेस घोषणाओं में की गईं। उनमें कृषि सुधारों से लेकर श्रम कानूनों तक अधिकांश घोषणाएं अपनी दिशा खो चुकी हैं। कृषि कानूनों को तो रद्द ही कर दिया गया है और बाकी घोषणाएं सिस्टम के जाल में उलझकर रह गई हैं।

इस बजट की सुर्खी बनने लायक बात मध्यवर्ग के विशाल निचले तबके में 12 से 24 लाख की सालाना आय वाले लोगों को आयकर में दी गई राहत है, लेकिन यह 2019 में उद्यम को नई तेजी देने की उम्मीद में कॉर्पोरेट जगत को दी गई रोनाल्ड रीगन मार्का दुस्साहसी टैक्स छूट की तुलना में कुछ भी नहीं है।

निजीकरण को तो दफन करके भुला ही दिया गया है। पिछले कुछ महीनों से प्रधानमंत्री दावे कर रहे हैं कि उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में उनके राज में सार्वजनिक उपक्रम काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और पिछले सप्ताह उन्होंने कांग्रेस और ‘आप’ से उधार लिए गए मुहावरों का प्रयोग किया- ‘सर्वसमावेशी आर्थिक वृद्धि’ और ‘आम आदमी’।

इंदिरा गांधी ने अपनी लोकसभा के अवैध छठे साल में संविधान की प्रस्तावना में जो ‘धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी’ शब्द दाखिल करवाए, उन पर भी दोनों पक्षों की मुहर लग गई है। भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था अपने पुराने आधारों पर पहुंच गई है या बेबाकी से कहूं तो कांग्रेस के समाजवादी आधारों पर!

बड़ी परमाणु खरीद जादुई नतीजे दे सकती है। परमाणु ऊर्जा एक्ट में संशोधन का अर्थ होगा परमाणु बिजली उत्पादन का मामला बिजली मंत्रालय को सौंपना। अगर सरकार ये संशोधन करवाती है तो इसका उसे राजनीति में भी फायदा होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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