शेखर गुप्ता का कॉलम:  बांग्लादेश के प्रो. यूनुस के नाम खुली चिट्ठी
टिपण्णी

शेखर गुप्ता का कॉलम: बांग्लादेश के प्रो. यूनुस के नाम खुली चिट्ठी

Spread the love


6 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ - Dainik Bhaskar

शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

प्रिय प्रोफेसर यूनुस, मैं समझ नहीं पा रहा कि आपको बधाई दूं या आपसे हमदर्दी जताऊं? इतने शानदार तरीके से तख्तनशीं होने के लिए आमतौर पर सावधानी बरतते हुए बधाई नहीं दी जाती, लेकिन इस उपमहादेश के एक बड़ी आबादी वाले और कुल-मिलाकर गरीब मुल्क का नेतृत्व करने की चुनौती को हल्के से नहीं लिया जा सकता।

फिर भी, सबसे पहले आपको बधाई! 2016 के शुरू में जब हुबली-धारवाड़ में एक बड़े जनकल्याण सम्मेलन के दौरान आपके साथ दो दिन बिताने का सौभाग्य मिला था, तब मैं आपकी गम्भीरता, शालीनता और प्रतिकूलताओं से निबटने की क्षमता से काफी प्रभावित हुआ था।

मेरे ‘वॉक द टॉक’ शो में इंटरव्यू देते हुए आपने बताया था कि शेख हसीना ने आपके बैंक का अधिग्रहण कर लिया था तो आप उसे किस तरह विदेश ले गए थे। मैंने आपको उलझाने के लिए पूछा कि क्या आपने विदेश में बैंक स्थापित करके हसीना से बदला लिया था? इस पर आपने जवाब दिया था कि आप बदला लेने की नहीं, बल्कि जो सही था वह करने की कोिशश कर रहे थे। पर मैंने देखा कि आप आहत थे।

पिछले साल अगस्त में जब हसीना सरकार अविश्वसनीय और नाटकीय रूप से गिर गई तो आपको नए शासन का नेतृत्व करने के लिए विदेश से वापस लाया गया। हालांकि, आपने अपने इस पद या राजनीतिक ज़िम्मेदारी को कोई नाम नहीं दिया है। आप बांग्लादेश के ‘चीफ एडवाइजर’ बने हुए हैं और इस महीने दावोस सम्मेलन में शायद इसी हैसियत से शामिल होंगे।

हसीना काफी आलोकप्रिय हो गई थीं और ताजा चुनाव पिछले चुनाव के मुकाबले और बड़ा धोखा था। वह ठीक वैसा ही था, जैसा चुनाव पाकिस्तानियों ने इमरान खान को अलग-थलग करके करवाया था। क्या मैं यह कह सकता हूं कि आप जब अपने जख्म सहला रहे थे तब इस नाटकीय बदलाव की उम्मीद नहीं कर रहे थे?

बशर्ते आप तमाम राजनीतिक नेताओं की तरह ज्योतिषशास्त्र में भरोसा न करते हों और किसी प्रकांड ज्योतिषी की सेवाएं न लेते हों। आपका ज्योतिषी आडवाणी के ज्योतिषी से तो बेहतर ही होगा। डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ परमाणु संधि के मसले पर संसद में बहस के दौरान आडवाणी पर तंज भी कसा था कि वे उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनके ज्योतिषी ने उन्हें कहा है कि वे प्रधानमंत्री बनने वाले हैं!

डॉ. सिंह ने परवेज मुशर्रफ से यह भी कहा था कि आप और मैं, दोनों अपने-अपने देश के आकस्मिक नेता बने। सार्वजनिक पद पब्लिक ट्रस्ट के समान होता है। हम इस पद पर रहकर कुछ न करें तो इस पर बने नहीं रह सकते। क्या मैं बड़ी विनम्रता के साथ आपसे यह अनुरोध कर सकता हूं कि आप भी खुद को इस कसौटी पर कसें? आपका जिस तरह नाटकीय उत्कर्ष हुआ है, उसके कारण आपकी स्थिति मुशर्रफ से ज्यादा डॉ. सिंह जैसी है।

मुशर्रफ का उत्कर्ष उतना आकस्मिक नहीं था। पाकिस्तान में हर एक फौजी अफसर कमीशन हासिल करते ही यह सोचने लगता है कि वह भी वहां का राष्ट्रपति बन सकता है। आप तो भारत के आप जैसे अर्थशास्त्रियों से कहीं ज्यादा भाग्यशाली हैं। सो, आपके लिए कसौटी यह है कि आपको जब एक सार्वजनिक पद मिल गया है तब आप यह मानें कि जनता ने आपमें भरोसा जताया है। क्या आप इस पद पर बने रहें और कुछ भी न करें? और आप कुछ करें, तो वह क्या हो?

आप कह सकते हैं कि आप लोकतंत्र को बहाल करके, संस्थाओं को पुनर्गठित करके तथा उनकी वैधता बहाल करके अपने प्रति एक कृतज्ञ मुल्क छोड़कर जाना चाहते हैं। इसे उपलब्धियों की एक शानदार सूची माना जा सकता है, लेकिन तब यह सवाल उठता है कि इन्हें हासिल करने के लिए आप कितना समय लेना चाहते हैं? क्या आपने इनके लिए कोई डेडलाइन तय की है?

आपने कई तरह के आयोग गठित करने की बात की है। यह एक अच्छा विचार है, लेकिन हमारे जैसे मुल्कों में इस तरह के आयोग अपना अस्तित्व अनिश्चित काल तक बनाए रखने के फेर में ही रहते हैं। मैंने ‘अल-जजीरा’ में आपका हाल ही में आया इंटरव्यू पढ़ा जिसमें आपने कोई तारीख नहीं दी है। वैसे, आपने यह भी कहा है कि इसमें चार साल तक लग सकते हैं।

क्या आपके पास सचमुच इतना समय है? आपका स्वास्थ्य बहुत अच्छा है, लेकिन इस तरह की अस्थायी व्यवस्था में सत्ता में कम ही समय तक बने रहा जा सकता है। आपके बड़े प्रतिद्वंद्वी, प्रमुख राजनीतिक दलों का सब्र टूटने भी लगा है। मैं मानता हूं आप इस उपमहादेश के मुगाबे या महाथिर नहीं बनना चाहते।

आप इतने सुशिक्षित हैं कि इस तरह का भ्रम नहीं पाल सकते। आप इस्लामवादियों का तुष्टीकरण करके उन्हें शांत कर रहे हैं, लेकिन समय के साथ उनकी अधीरता बढ़ेगी ही। आपने बांग्लादेश को एक नया गणतंत्र बनाने का वादा करके अपने लिए सबसे बड़ी मुसीबत मोल ले ली है।

1972 के बाद से बांग्लादेश के संविधान की भी पाकिस्तान की तरह कई पुनरावृत्ति हो चुकी है। अब आप बिलकुल नया संविधान लिखना चाहते हैं, लोकतंत्र समर्थकों और इस्लामवादियों से निबटना चाहते हैं और खुद अपने विचारों को भी लागू करना चाहते हैं। ऐसे चमत्कार आसानी से नहीं किए जा सकते। अगर आप भारत से सिर्फ इसलिए नाराज हैं कि हसीना यहां रह रही हैं, तो आपको यह अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए कि भारत उन्हें आपको सौंप देगा।

एक खतरनाक खेल… मुझे चिंता इस बात को लेकर हो रही है कि अवाम को संतुष्ट करने के लिए आपका शासन जिस एक दांव का इस्तेमाल कर रहा है, वह हमारे पड़ोस के खेल का सबसे पुराना दांव है : भारत विरोधी भावनाओं को भड़काना। यह एक जाना-पहचाना मगर खतरनाक खेल है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *