उसने यह बात रिश्तेदार डकैत विक्रम मल्लाह को बताई। विक्रम मल्लाह माधव को लेकर गैंग के साथियों के साथ कुसुमा की ससुराल पहुंचा। उसने कुसुमा को अगवा कर लिया। इसके बाद वह माधव के साथ विक्रम गैंग में शामिल हो गई। कुछ समय बाद फूलन देवी से अनबन के बाद डकैत राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ गैंग में शामिल हो गई थी।
1982 में फूलन ने किया था आत्मसमर्पण
1980 से उसने गैंग में अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी। 14 मई 1981 को डकैत फूलन ने 22 ठाकुरों को गोली मार दी थी। इस कांड के बाद डाकू फक्कड़ और उसकी माशूका बन चुकी कुसुमा अपनी दहशत बढ़ाने के लिए बेताब थे। इस बीच 1982 में फूलन ने आत्मसमर्पण कर दिया।
इसके बाद फक्कड़ और कुसुमा ने साल 1984 में औरैया के मई अस्ता गांव में पहुंचकर 12 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी थी। इतना ही नहीं उनके घरों को आग लगा दी थी।
इससे उसका आतंक बढ़ गया था। कुसुमा इतनी क्रूर थी कि वह जिनका अपहरण करती उनके बदन पर चूल्हे की जलती हुई लकड़ी लगा देती थी। जंजीरों से बांध कर हंटर से मारती थी।