एन. रघुरामन का कॉलम:  जब किसी काम में कला सर्वोपरि होती है, वहां सुंदरता अपने आप जुड़ जाती है
टिपण्णी

एन. रघुरामन का कॉलम: जब किसी काम में कला सर्वोपरि होती है, वहां सुंदरता अपने आप जुड़ जाती है

Spread the love


  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column When Art Is Paramount In Any Work, Beauty Is Automatically Added To It

54 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

एक पत्रकार के रूप में मेरी शामें हमेशा व्यस्त हुआ करती हैं और ये किसी कॉर्पोरेट दफ्तर की व्यस्त सुबह से भी ज्यादा व्यस्त होती हैं, क्योंकि इसी समय हम लोग अखबार को अंतिम रूप देते हैं, जिसे आप हर सुबह पढ़ते हैं।

शाम को हमारे फोन बजना कभी बंद नहीं होते। लेकिन इस रविवार की शाम गणतंत्र दिवस की छुट्टी होने के कारण, मैंने अपना फोन बंद करने की हिम्मत जुटाई और मुंबई के बांद्रा में नीता मुकेश अंबानी कल्चर सेंटर (एनएमएसीसी) के ऑडिटोरियम थिएटर में इस सीजन के आखिरी शो ‘मुगल-ए-आज़म’ का आनंद लेने पहुंच गया।

सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी पर आधारित ये नाटक मुगल सम्राट अकबर के सामने द्वंद्व को बयां करता है, जो अपने साम्राज्य के भविष्य की जिम्मेदारी-अपने सिद्धांत और एक प्यारे बेटे के पिता के रूप में अपने कर्तव्य के बीच फंस गए हैं।

अपनी जवानी के दिनों में ये फिल्म देखने के साथ, इसके बारे में पढ़ने और मेरे प्रिय मित्र स्वर्गीय राजकुमार केसवानी के साथ इस फिल्म पर कई शामें चर्चा करने के चलते, जिन्होंने ‘दास्तान-ए-मुगल-ए-आज़म’ किताब लिखी, मैं खुद को रोक नहीं सका कि इसकी तुलना इस नाटक से करूं। फिरोज अब्बास खान के निर्देशन में बारीकी, डिजिटल बैकग्राउंड, शास्त्रीय संगीत, मंत्रमुग्ध कर देने वाले नृत्य और पूरे प्रदर्शन में करामाती प्रकाश व्यवस्था को नियोजित करने की अद्भुत क्षमता दिखी।

यह नाटक उन्हें जरूर देखना चाहिए, जिन्हें लाइव प्रस्तुति पसंद है, जहां कलाकार पार्श्व संगीत के लिए लिप-सिंग नहीं करते, बल्कि अपने एक्ट में संवाद अदायगी के साथ-साथ हकीकत में गाते हैं। दर्शकों को यह विश्वास दिलाने के लिए कि कलाकार वास्तव में अपने गाने गाते हैं, निर्देशक ने उन्हें नाटक के बाद पर्दा गिरते ही कुछ लाइन गाने के लिए कहा, जहां सभी कलाकारों को दर्शकों से मिलवाया जाता है।

लेकिन एक और बात ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वह थी एनएमएसीसी का लुक और सुविधाएं, जिसे निर्देशक ने माना कि यह थिएटर सुंदरता के साथ-साथ कलाकारों और दर्शकों के लिए समान रूप से सुविधाओं के मामले में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक है।

संयोग से, उसी सुबह हममें से कुछ मित्र ध्वजारोहण के बाद दुनिया के सबसे लंबे संविधान पर चर्चा कर रहे थे। शुरुआत इस तरह हुई कि किसे संविधान के कुल पृष्ठ की संख्या याद है, (दुनिया में सबसे लंबा संविधान भारत का 231 पृष्ठों वाला है) फिर चर्चा इस पर चली गई कि इसे कलात्मक रूप से कैसे तैयार किया गया, इसलिए इसके निर्माण में शामिल उन नामों पर चर्चा हुई, जिन्हें कम याद किया जाता है।

संसद सचिवालय के 1950 के एक नोट के अनुसार, संविधान को कैलिग्राफी व आर्ट से सुशोभित करने का विचार अर्थशास्त्री के टी शाह की तरफ से आया था, जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़े थे और मैसूर-बॉम्बे विश्वविद्यालयों में पढ़ाया था।

यह उस समय के एक उल्लेखनीय व्यक्ति कृष्ण कृपलानी थे, जिन्होंने शांतिनिकेतन में पढ़ाया और बाद में रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी लिखी, उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को सुझाव दिया कि वे कला भवन, शांतिनिकेतन के कला विद्यालय के पहले प्रिंसिपल नंदलाल बोस को मनाएं, ताकि वे इसकी डिजाइन की जिम्मेदारी लें।

बारीक डीटेल पर भी पूरी मेहनत की गई, जैसे संविधान की प्रस्तावना में शेर कैसे दिखना चाहिए। बोस चाहते थे कि यह सही भावों के साथ असली शेरों जैसा दिखे। ये जिम्मेदारी दीनानाथ भार्गव को दी गई, जो शेरों के हावभाव-तौर-तरीकों का अध्ययन करने के लिए कई दिनों तक कोलकाता चिड़ियाघर का दौरा करते रहे।

ललित कला अकादमी की किताब के मुताबिक, बोस जब शुरुआती रेखाचित्रों से संतुष्ट हो गए तब जाकर उन्होंने भार्गव को संविधान के पहले पन्ने के लिए प्रतीक डिजाइन करने का बड़ा काम दिया। कैलिग्राफी, सजावट, छपाई और बाइंडिंग शीर्ष स्तर की थी। आश्चर्य नहीं कि कलाकृति के रूप में भी हमारा संविधान प्रिय बना हुआ है।

फंडा यह है कि यदि कोई एक्टर या काम करने वाला व्यक्ति बेहद बारीकी व समर्पण से काम करता है, तो उनका काम अंततः बाद में मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानियां बन जाता है।

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *