रसरंग पुस्तक समीक्षा:  एआई नया अध्याय या आखिरी गलती?
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रसरंग पुस्तक समीक्षा: एआई नया अध्याय या आखिरी गलती?

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जयजीत अकलेचा1 घंटे पहले

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  • युवाल नोआ हरारी की बहुचर्चित किताब ‘नेक्सस’ की समीक्षा

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के गॉडफादर कहे जाने वाले जैफ्री ई. हिंटन को बीते साल अक्टूबर माह में जब भौतिकी के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा था, तब उनके शब्द थे- ‘हमें एआई के बुरे असर को लेकर भी चिंतित होना चाहिए।’ जिस वक्त हिंटन अपनी ये चिंता व्यक्त कर रहे थे, लगभग उसी समय युवाल नोआ हरारी अपनी सद्य प्रकाशित किताब ‘नेक्सस’ के जरिए इसी चिंता को और विस्तार दे रहे थे। ‘सेपियन्स’ के बेस्टसेलिंग लेखक हरारी की यह किताब, जिसका हाल ही में मंजुल पब्लिकेशन से हिंदी संस्करण आया है, पाषाण युग से लेकर आधुनिक काल तक के सूचना तंत्रों का एक संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत करती है। लेकिन इसका सबसे रोचक और रोमांचक हिस्सा (और बेशक डरावना भी) वह तीसरा खंड है, जो एआई और उससे जुड़ी राजनीति पर विमर्श करता है। दुनिया में एक वर्ग एआई को लेकर जितना उत्साहित या बेफिक्र है, हरारी उतने ही चिंतित नजर आते हैं। वे इसे वैश्विक संकट की आहट मानते हैं। वे लिखते हैं, ‘जिस तरह से जलवायु परिवर्तन उन देशों को भी तबाह कर सकता है, जो पर्यावरण के नियमों का पालन करते हैं, क्योंकि यह राष्ट्रीय समस्या नहीं है। उसी तरह एआई भी एक वैश्विक समस्या है। ऐसे में कुछ देशों का यह सोचना महज उनकी मासूमियत से ज्यादा कुछ नहीं होगा कि वो अपनी सरहदों के भीतर एआई को समझदारी के साथ नियंत्रित कर सकते हैं।’ वे साफ तौर पर आगाह करते हैं कि हमने जिस कृत्रिम मेधा का निर्माण किया है, अगर उसे ठीक से बरतते नहीं हैं तो यह न केवल धरती से मानव वर्चस्व को, बल्कि स्वयं चेतना के प्रकाश को भी खत्म कर देगी। एआई के प्रति हरारी का दृष्टिकोण अत्यंत निराशावादी लग सकता है (‘गार्डियन’ के शब्दों में कहें तो ‘अपोकैलिप्टिक’ यानी सर्वनाश का भविष्यसूचक)। लेकिन जिन शब्दों तथा तथ्यों की रोशनी में वे बात करते हैं, वह यथार्थपरक भी प्रतीत होता है। वे एक टर्म ‘डेटा उपनिवेशवाद’ का प्रवर्तन भी करते हैं और घोषित करते हैं कि जो भी डेटा को नियंत्रित करेगा, दुनिया पर भी उसी का वर्चस्व होगा, बशर्ते यह दुनिया अपने मौजूदा अस्तित्व को बनाए व बचाए रखे। वे दुनिया के अस्तित्व को लेकर बार-बार चिंताएं जताते हैं और बहुत ही वाजिब सवाल पूछते हैं, ‘अगर हम इतने विवेकवान हैं तो फिर इतने आत्मविनाशकारी क्यों हैं?’ हालांकि निराशाओं के बीच भी वे किताब की अंतिम पंक्तियों में, मगर छिपी हुई चेतावनी के साथ, क्षणिक-सी आशा बिखेरते हुए लिखते हैं, ‘आने वाले वर्षों में हम सभी जो भी निर्णय लेंगे, उससे ही यह तय होगा कि इस अजनबी बुद्धि (एआई) का आह्वान करना हमारी आखिरी गलती है या इससे जीवन के विकास में एक नए अध्याय का सूत्रपात होगा।’

किताब: नेक्सस लेखक: युवाल नोआ हरारी अनुवाद: मदन सोनी प्रकाशक: मंजुल पब्लिशिंग हाउस



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