गौरव पाठक4 घंटे पहले
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क्रेडिट कार्ड आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन अनधिकृत लेनदेन, अनुचित शुल्क और जुर्माने जैसे इसे जुड़े विवाद भी आम हो गए हैं। हालांकि यह क्षेत्र भारतीय रिजर्व बैंक और बैंकों की आंतरिक नीतियों द्वारा नियंत्रित होता है, लेकिन उपभोक्ता कानून भी इसमें दखल दे सकते हैं।
क्या है कानूनी ढांचा? उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) के तहत क्रेडिट कार्ड धारक उपभोक्ता माने जाते हैं और वे किसी भी शिकायत के लिए उपभोक्ता आयोग का रुख कर सकते हैं। धारा 2(11) में किसी भी प्रकार की खराब या अनुचित सेवा को “कमी’ (डेफिशिएंसी) माना जाता है। यह कानून ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के लेनदेन पर समान रूप से लागू होता है, जिससे क्रेडिट कार्ड उपयोगकर्ताओं को लेन-देन के सभी मोड में सुरक्षा मिलती है।
अनधिकृत लेनदेन एचडीएफसी बैंक लिमिटेड बनाम जेस्ना जोस (2021) मामले में ग्राहक के पास कार्ड होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय लेनदेन हुए। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने माना कि जब तक कार्ड के चोरी होने का कोई सबूत नहीं होता, इस तरह के अनधिकृत लेन-देन के लिए बैंक को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा। आयोग ने आरबीआई की जीरो लाइबिलिटी सर्कुलर को लागू करते हुए बैंक को ग्राहक की राशि वापस करने और 45,000 रुपए का मुआवजा देने का जिला और राज्य आयोगों के फैसले को बरकरार रखा।
क्या कार्ड वास्तव में मुफ्त है? हरदीप सिंह ढालीवाल बनाम एचडीएफसी बैंक (2023) मामले में यह मुद्दा सामने आया था। क्रेडिट कार्ड के आवेदन पत्र में लिखा था कि “कोई वार्षिक/एकमुश्त/मासिक शुल्क नहीं’ लगेगा। लेकिन एक अन्य दस्तावेज, जिसे कि “मोस्ट इम्पॉर्टेंट डॉक्युमेंट’ (MID) कहा गया था, में यह शर्त थी कि यदि ग्राहक साल में 3 लाख रुपए खर्च नहीं करता है तो उसे शुल्क देना पड़ेगा। ग्राहक इतनी राशि खर्च नहीं कर पाया और इस वजह से उसके बैंक खाते से शुल्क काट लिया गया। इस पर ग्राहक ने उपभोक्ता फोरम में शिकायत की। राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि यदि कोई शर्त किसी अन्य दस्तावेज में लिखी हो तो उसे स्पष्ट करने का दायित्व बैंक का है। हालांकि ग्राहक ने उस MID पर हस्ताक्षर किए थे, इसलिए उसकी शिकायत खारिज कर दी गई।
समय पर भुगतान वेंकट अंजनयेलु बुरले बनाम स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (2022) मामले में तेलंगाना राज्य आयोग ने यह माना कि बैंक को ग्राहकों से प्राप्त भुगतान को समय पर क्रेडिट करना चाहिए। यदि बैंक स्वयं इसमें देरी करता है और इससे ग्राहक को अतिरिक्त ब्याज या शुल्क देना पड़ता है तो यह सेवा में कमी मानी जाएगी।
कार्ड को निष्क्रिय करना अगर बैंक बिना उचित कारण के क्रेडिट कार्ड को निष्क्रिय कर देता है तो यह सेवा में कमी मानी जाएगी। इसके लिए डॉ. बी. प्रेमकुमार बनाम भारतीय स्टेट बैंक (2023) मामले को लिया जा सकता है। एक ग्राहक का क्रेडिट कार्ड अंतरराष्ट्रीय यात्रा के दौरान अचानक निष्क्रिय कर दिया गया। बाद में बैंक ने इसकी वजह सुरक्षा कारण बताया, लेकिन तमिलनाडु राज्य आयोग ने इसे बैंक की ओर से सेवा में कमी करार दिया। आयोग ने कहा कि बैंक को सुदृढ़ निगरानी प्रणाली अपनानी चाहिए और बिना किसी ठोस कारण के कार्ड निष्क्रिय नहीं करना चाहिए।
सिबिल रिपोर्टिंग उपभोक्ता मंचों ने सिबिल रिपोर्टिंग को लेकर विवादों का भी समाधान किया है। देवेन रसिक दागली बनाम स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (2021) मामले में गुजरात राज्य आयोग ने पाया कि यदि बैंक बिना उचित जांच किए CIBIL (क्रेडिट सूचना ब्यूरो) को गलत रिपोर्टिंग करता है तो यह सेवा में कमी होगी। इस मामले में आयोग ने बैंक को 50 हजार रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।
क्षेत्राधिकार डिजिटल बैंकिंग के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए उपभोक्ता कानूनों के क्षेत्राधिकार को व्यापक बनाया गया है। वेंकट अंजनयालु मामले में राज्य आयोग ने यह स्पष्ट किया कि ऑनलाइन लेनदेन के मामलों में उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज कर सकता है, जहां वह रहता है या जहां उसे बैंक से संबंधित कम्युनिकेशन प्राप्त हुआ या जहां लेन-देन हुआ। (लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)