गौरव पाठक29 मिनट पहले
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भारत में होटल इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है। होटल अपने मेहमानों को आरामदायक रहने की सुविधा देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सेवा में कमी के अनेक मामले भी सामने आए हैं। आज हम उपभोक्ता अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों की रोशनी में होटल के मेहमानों को मिलने वाले अधिकारों और होटलों की संबंधित जिम्मेदारी का विश्लेषण करेंगे।
सुरक्षा सुनिश्चित करना अपने गेस्ट या मेहमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होटलों की प्राथमिक जिम्मेदारी है। कोका नागा त्रिनाथ बनाम गोनीमादथला चंद्र लक्ष्मी (2024) मामले में राष्ट्रीय आयोग ने माना कि लॉज में ठहरने वाला कोई भी ग्राहक अपने जीवन और सामान की सुरक्षा की उम्मीद करता है। लॉज में ठहरने वाले लोगों की सुरक्षा करना लॉज के मालिक का कर्तव्य है। होटल की लापरवाही के कारण लॉज में एक गेस्ट की हत्या कर दी गई, जिसे अदालत ने सेवा में कमी के बराबर माना।
इसी तरह, गंगाधर शमनदास मंगलानी बनाम होटल लकी इंडिया (2022) मामले में राष्ट्रीय आयोग ने “रेस इप्सा लोक्विटर’ (चीजें खुद बोलती हैं) सिद्धांत को लागू किया और होटल में आग लगने के कारण गेस्ट की मौत के लिए होटल को उत्तरदायी ठहराया। होटल में न तो स्मोक डिटेक्टर था और न ही वहां के कर्मचारियों को अग्निशामक यंत्र चलाने का प्रशिक्षण दिया गया था। चूंकि दुर्घटना के वजह की जानकारी होटल को थी और उसकी ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था, इसलिए इस मामले में होटल की लापरवाही साबित हुई।
वैले पार्किंग वैले पार्किंग प्रदान करने वाले होटल केवल पार्किंग टोकन पर ‘ऑनर की रिस्क’ लिखकर अपने दायित्व से बच नहीं सकते। ताज महल होटल बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि होटल-अतिथि संबंध “इंफ्रा-हॉस्पिटियम’ की अवधारणा के तहत आते हैं। यानी जब कार मालिक वैले (होटल के कर्मचारी) को चाबी सौंपता है तो देखभाल की जिम्मेदारी होटल पर आ जाती है और वह वाहन को उसी स्थिति में वापस करने के लिए उत्तरदायी होता है, जिस स्थिति में उसे प्राप्त किया गया था। पार्किंग टैग पर ‘डिस्क्लैमर’ छापने भर से होटल अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाएगा।
अनुबंध में एकतरफा शर्तें होटलों में ‘डिस्क्लैमर’ छापकर बुकिंग रसीदों, बिलों आदि तक ही अपनी जिम्मेदारी सीमित करने की प्रवृत्ति होती है। एस.के. टेंग बनाम होटल सीलॉर्ड (2015) मामले में एक गेस्ट दूसरी मंजिल से नीचे गिरकर घायल हो गया। होटल ने दलील दी कि टोकन में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ था कि प्रबंधन किसी भी नुकसान, चोरी या क्षति के लिए जिम्मेदार नहीं होगा। राष्ट्रीय आयोग ने इस दलील को खारिज कर दिया और गेस्ट को मुआवजा देने का आदेश दिया। अनुचित और एकतरफा अनुबंध की शर्तें उपभोक्ताओं को बाध्य नहीं कर सकतीं।
मुआवजे का दावा उपभोक्ता अदालतों ने दुर्घटनाओं के अनेक मामलों में उत्पीड़न और मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। सी. वेणुप्रसाद बनाम नारंग्स इंटरनेशनल होटल प्राइवेट लिमिटेड (2012) मामले में गेस्ट ढाई घंटे तक होटल की लिफ्ट में फंसे रहे। लिफ्ट के रखरखाव में लापरवाही के लिए होटल को दोषी मानते हुए राष्ट्रीय आयोग ने प्रत्येक गेस्ट को नुकसान और मानसिक पीड़ा के लिए 2 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया।
होटलों की जिम्मेदारी तय करते समय उपभोक्ता आयोगों और मंचों ने देखभाल के कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित किया है। होटलों से अपेक्षा की जाती है कि जब तक गेस्ट और उनका सामान होटल परिसर के भीतर है, तब तक वे उचित तरह से देखभाल करेंगे। गेस्ट न केवल वास्तविक नुकसान के लिए, बल्कि असुविधा और मानसिक पीड़ा के लिए भी मुआवजे का दावा कर सकते हैं। (लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)