देवदत्त पट्टनायक2 घंटे पहले
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तेलंगाना के हनमाकोंडा स्थित हजार स्तंभ मंदिर के सामने बनी नंदी की विशालकाय प्रतिमा।
बहुधा वृद्ध पीढ़ी यह बहाना बनाकर युवा पीढ़ी से जानकारी छिपाए रखती है कि इससे लोग लज्जित होंगे। लेकिन इस तरह से जानकारियों को छिपाना वर्तमान और भविष्य की युवा पीढ़ियों के विरुद्ध किया गया अपराध है।
इसी संदर्भ में बात करनी हो तो शहर के अनेक लोग खासकर सांड और बैल के बारे में इतना नहीं जानते हैं। बुजुर्ग लोग बताने से बचते हैं, लेकिन यह त्रासदी है, क्योंकि इससे आध्यात्मिकता की समझ अधूरी रह जाती है। आइए आज के लेख में शिव के वाहन नंदी के माध्यम से इनमें अंतर को समझने का प्रयास करते हैं।
कुछ दिन पहले मैं एक नए शिव मंदिर गया था। इस मंदिर का निर्माता मुझे गर्व से मंदिर की विशेषता दिखा रहा था। शिव के वाहन यानी नंदी की विशाल मूर्ति आंगन में मुख्य मंदिर की ओर मुंह किए खड़ी थी। कॉन्क्रीट की बनी यह मूर्ति बेहद मोहक थी। उसके चारों ओर एक चक्कर लगाने के बाद मैंने उस व्यक्ति से पूछा, ‘यह मूर्ति वृषभ अर्थात सांड की है या बैल की?’ ‘यह नंदी की मूर्ति है,’ उसने उत्तर दिया। मैंने और स्पष्ट करते हुए पूछा, ‘नंदी सांड है या बैल?’ वह मेरे प्रश्न से चकरा गया। मैं समझ गया कि वह सांड और बैल में अंतर नहीं जानता था। मुझे इससे कोई अचरज नहीं हुआ, क्योंकि वह शहर में पला-बढ़ा था। फलस्वरूप, वह पशुपालन की प्रथाओं से अवगत नहीं था।
मैंने उससे यह प्रश्न इसलिए पूछा था क्योंकि उस विशालकाय प्रतिमा के पीछे की ओर वीर्यकोष दिखाई नहीं दे रहा था। किसी भी पारंपरिक शिव मंदिर में लोग बहुधा नंदी के शरीर में इस भाग को दी गई प्रधानता को देखकर चकित रह जाते हैं। आधुनिक मंदिर कॉन्क्रीट, संगमरमर और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई गईं इन मूर्तियों में बहुधा उसे दिखाने में संकोच करते हैं। एक मूर्तिकार ने मुझसे कहा था कि ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग उसे देखने से शर्माते हैं और उन्हें वह बहुत अश्लील लगता है। उसने कहा कि कतिपय लोग यह भी भूल कर बैठते हैं कि नंदी गाय है।
हम अत्यधिक लज्जालु होते जा रहे हैं। और यदि हम अज्ञानी भी रहे तो वह जोखिमभरा हो सकता है। नंदी के शरीर का यह भाग दिखाना अत्यावश्यक है। इसका उद्देश्य लोगों को केवल यह समझाना है कि नंदी नर है, न कि मादा और यह कि बैल के विपरीत वह सांड है, अर्थात उसके वीर्यकोष की बलि नहीं दी गई है। इसका अर्थ यह है कि वह पालतू नहीं है। इसलिए उसका हल चलाने या बैलगाड़ी खींचने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। वह लद्दू प्राणी नहीं है। नंदी को अपने इस भाग के बिना दिखाना उसे एक अलग ही पहचान देने के समान है।
शिव का वाहन नंदी वृषभ अर्थात सांड है, न कि बैल। इसके पीछे एक वजह है। सांड जंगली प्राणी है। वह गायों को गर्भवती बना सकता है, जो बैल नहीं कर सकते। और जब तक गाय गर्भवती होकर बछड़े को जन्म नहीं देगी, तब तक वह दुधारू नहीं बन सकेगी। दूसरी ओर पालतू बैल भी आवश्यक है, क्योंकि वह खेतों में हल चला सकता है। इस प्रकार, सांड और बैल दोनों जरूरी हैं। यह धर्म-संकट है, जहां हमें स्वायत्तता और पालतू बनाने में संतुलन पाना है। मनुष्य भी इसी धर्म-संकट से गुजरते हैं – अपनी वृत्ति के अनुसार मुक्त रहें या उत्तरदायित्व का बोझ उठाएं।
हिंदू आख्यान शास्त्र के अनुसार शिव ने विवाह करके गृहस्थ बनने से इनकार कर दिया था। लेकिन देवी ने उनसे विनती की कि वे देवी से विवाह करें। जब तक कि शिव देवी के पति बनकर सांसारिक विश्व में भाग नहीं लेंगे, तब तक विश्व का सृजन नहीं होगा। शिव न चाहते हुए भी मान गए। वे देवी के वर बन गए, लेकिन देवी की गृहस्थी के प्रमुख नहीं बने। देवी ने स्वायत्त रूप से विश्व की देखभाल की। उन्होंने विश्व का पोषण किया, जैसे गाय दूध देकर हमारा पोषण करती है। दूसरी ओर शिव ने विश्व के बंधनों से अलग स्वतंत्र रहना पसंद किया। शिव का यही रूप उनके मंदिरों में नंदी के माध्यम से दिखाया जाता है। इसीलिए नंदी की मूर्ति का उचित निरूपण अत्यावश्यक है।