रूमी जाफरी5 घंटे पहले
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अपनी सुपरहिट फिल्म ‘शहीद’ में मनोज कुमार।
मैं जानता हूं कि 4 तारीख के बाद से मनोज कुमार जी के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है, फिर भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सदस्य होने और मनोज जी का प्रशंसक होने के नाते ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इस कॉलम में उनके बारे में जरूर लिखूं।
मनोज जी की पैदाइश मौजूदा पकिस्तान के गांव शेखपुरा में हुई थी। यह वही शेखपुरा है, जहां सूफी संत वारिस शाह पैदा हुए थे। पिताजी ने उनका नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी रखा। मनोज जी पढ़ाई करने के लिए लाहौर आ गए। किशोरावस्था में ही उन्होंने दिलीप कुमार की फिल्म ‘शबनम’ देखी तो वे दिलीप कुमार के मुरीद हो गए और उन्होंने मन ही मन एक्टर बनने की ठान ली। उन्होंने ये फैसला भी लिया कि अगर वो जीवन में कभी एक्टर बन पाए तो अपना नाम ‘मनोज कुमार’ रखेंगे, क्योंकि फिल्म ‘शबनम’ में दिलीप कुमार का नाम मनोज था। ऊपरवाले ने उनकी इच्छा पूरी की और बम्बई आने के बाद वे हीरो बन गए। उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार ही रखा। मगर उनकी पहचान ‘भारत कुमार’ के रूप में हुई। उनकी प्रेरणा लेकर मैंने अपनी फिल्म ‘गली गली चोर है’ में मैंने अपने हीरो अक्षय खन्ना का नाम ‘भारत’ रखा था।
देश भक्ति पर आधारित उन्होंेने पहली फिल्म ‘शहीद’ बनाई, जो भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन पर थी। जब वो फिल्म बन रही थी, तो उसी दौरान उनकी मुलाकात उस वक्त के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी से हो गई। उन्होंने कहा कि कोई अच्छी फिल्म बनाओ तो मनोज जी ने उनसे कहा कि वे एक फिल्म बना रहे हैं ‘शहीद’ जो आपको बहुत पसंद आएगी। तो शास्त्री जी ने कहा, मुझे दिखाना। मनोज जी ने फिल्म खत्म होने के बाद दिल्ली में ट्रायल रखा। मनोज जी ने बताया था, ‘मगर उस वक्त देश में युद्ध शुरू हो गया। शास्त्री जी ने कहा मेरे पास बिलकुल समय नहीं है कि मैं फिल्म देख सकूं। मैं मायूस हो गया और उनसे कहा कि आपने मुझसे वादा किया था, तो उन्होंने कहा कि ठीक है, मैं आऊंगा, लेकिन 8-10 मिनट ही देखूंगा। वो आए और मैं उनके पास ही बैठ गया। मैंने देखा कि 8-10 मिनट में ही वो फिल्म के साथ बहुत इन्वॉल्व हो गए हैं। तो मैंने पीछे इशारा किया कि इंटरवल मत करना, फिल्म चलने दो। शास्त्री जी 8-10 मिनट के लिए आए थे। वो पूरी फिल्म मंे बैठे रहे। उनकी आंखों में आंसू थे। फिल्म खत्म होने के बाद उन्होंने फिल्म की बहुत तारीफ की।’
बकौल मनोज कुमार जी, आधी रात को प्रधानमंत्री के ऑफिस से मुझे फोन आया कि शास्त्री जी कल आपसे मिलना चाहते हैं। मैं सुबह पहुंच गया। शास्त्री जी उनसे बोले, देखो मैंने देश को एक नारा दिया है जय जवान जय किसान। क्या इस पर कोई फिल्म बन सकती है? मनोज जी बोले, बिलकुल अब आपने बोल दिया तो सोचता हूं। मनोज कुमार जी को फ्लाइट में ट्रेवल करना पसंद नहीं था। वो ट्रेन से ही ट्रेवल करते थे। तो दिल्ली से बॉम्बे आने में जो समय लगता है, उसमें उन्होंने ‘उपकार’ की पूरी कहानी लिख ली। और इस तरह शास्त्री जी के कहने पर उपकार जैसी फिल्म बनी। आज उनके लिए मुझे भगत सिंह का एक शेर याद आ रहा है:
मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मैं इश्क भी लिखना चाहूं तो भी इंकलाब लिख जाता है
‘शहीद’ मेरी भी बहुत मनपसंद फिल्म है। तो जब मेरी मनोज जी से मुलाकात हुई तो मैंने उनसे पूछा कि आपने फिल्म का नाम ‘शहीद’ क्यों रखा, ‘भगत सिंह’ भी तो रख सकते थे। तो वो बोले कि मैं दिलीप कुमार से इतना प्रभावित था कि उनकी जो ‘शहीद’ मूवी थी, उसमें मुझे उनकी परफॉरमेंस इतनी पसंद आई कि मैंने भी इस फिल्म का नाम ‘शहीद’ रख दिया।
मनोज कुमार जी बहुत अच्छे शायर और लेखक भी थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब ऋषि कुमार जी ‘आ अब लौट चले’ डायरेक्ट कर रहे थे तो उन्होंने अपने घर पर दावत रखी। मनोज कुमार ने ऋषि कपूर से कहा कि ‘आ अब लौट चले’ का टाइटल सॉन्ग मैं तुम्हारे लिए लिखकर लाया हूं। गाने के बोल मैं भूल गया, लेकिन मुझे याद है कि जब ऋषि कपूर जी ने पार्टी में यह गाना मुझे सुनाया तो यही अफसोस हुआ कि पिक्चर के सारे गाने कम्पलीट हो गए, पिक्चर तकरीबन खत्म हो गई, वरना वो गाना फिल्म में जरूर डाला जाता।
मुझे एक और वाकया याद आ रहा है, जो मुझे उनके असिस्टेंट जगदीश जी ने सुनाया था और बाद मंे मैंने इसकी पुष्टि मनोज जी से भी की थी। उनकी फिल्म ‘क्रांति’ में स्टोरी स्क्रीनप्ले सलीम जावेद का था। और मेरे खयाल से सलीम जावेद जब सुपरस्टार बन गए, तो ये अकेली ऐसी फिल्म है, जिसमें डायलॉग उनके नहीं थे। डायलॉग मनोज कुमार जी ने खुद लिखे थे। तो उन्होंने बताया था कि प्रेम चोपड़ा का किरदार साजिश करके दिलीप कुमार के किरदार को अंग्रेजों के हाथों पकड़वा देता है। दिलीप कुमार को लाकर जंजीरों से बांध दिया जाता है और ताला लगाता है प्रेम चोपड़ा का किरदार।
जब नरीमन ईरानी शॉट लगा रहे थे तो दिलीप जी ने मनोज जी से पंजाबी में कहा कि यार मनोज, मुझे ऐसा लगता है कि मैं ऐसा खामोश लुक न दूं, मुझे डायलॉग बोलना चाहिए। मनोज जी बोले कि क्या बोलेंगे, क्रांति को अरेस्ट करा दिया गया है। यहां बोलने की कोई गुंजाइश नहीं है। फिर भी मनोज जी ने कहा कि मैं सोचता हूं। जब तक लाइटिंग होती रही, तब तक मनोज जी डायलॉग लिखकर लाए जो उस फिल्म का सबसे यादगार डायलॉग बन गया। उन्होंने दिलीप कुमार को डायलॉग सुनाया। इसमें दिलीप बोलते हैं कि कुल्हाड़ी पर गर लकड़ी का दस्ता न होता तो लकड़ी के कटने का रस्ता न होता।
मनोज जी अपनी फिल्में, अपने गानों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। आज मनोज जी की याद में उनकी फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ का ये गाना सुनिए, अपना खयाल रखिए और खुश रहिए।
है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहीं के गाता हूं…