एन. रघुरामन का कॉलम:  किसी भरोसेमंद व्यक्ति की पहचान करें और उसके सामने आत्मसमर्पण कर दें
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एन. रघुरामन का कॉलम: किसी भरोसेमंद व्यक्ति की पहचान करें और उसके सामने आत्मसमर्पण कर दें

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49 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

वह एक दुबला-पतला काला कुत्ता था, जो गहरी घास में छुपा-छुपा घूम रहा था। चारों तरफ बम धमाके हो रहे थे। उनका शोर उसके लिए डरावना था। वह घुटनों के बल चल रहा था। कोई नहीं जानता था वह कब तक ऐसे ही चलता रहा, जब तक कि नवंबर की एक सर्द दोपहर वह यूक्रेन के क्षतिग्रस्त क्षेत्र में उन घासों से बाहर नहीं निकल आया।

सावधानी से वह झाड़ियों के पास गया, जहां एक पूर्व कनाडाई सैनिक और उसका सहयोगी- जो यूक्रेनी सेना में विदेशी लड़ाके थे- ने अपने लिए आनन-फानन में एक गुप्त स्थान बनाया था। रूस-यूक्रेन सीमारेखा के करीब उस जगह हर तरफ युद्ध के निशान वाले धूसर इलाके में मलबे में तब्दील हो चुके घरों का एक बेजान फैलाव था।

कुत्ते की उदास लाल आंखों और उसकी खाल के नीचे से उभर रही पसलियों और कूल्हों की हड्डियों से वे समझ सकते थे कि वह लंबे समय से अपने हाल पर है। कुत्ता उनके बहुत करीब था। आम तौर पर सैनिक किसी भी जानवर को दूर भगाते हैं क्योंकि यह उनके जीवन को खतरे में डाल सकता है। लेकिन इस बार किसी चीज ने उन्हें रोका।

जब उनमें से एक ने कुत्ते के गाल को सहलाया तो वह उसके पैरों में लेट गया और अपना पेट ऊपर करके पैरों को हिलाते हुए उसे दुलारने के लिए आमंत्रित करने लगा। जिन लोगों के घर में पालतू जानवर हैं, वे इस व्यवहार को आसानी से समझ सकते हैं। जिनके पास नहीं हैं, उनसे मैं कहूंगा, यह कुत्ते का यह जताने का तरीका है कि- ‘मुझे तुम पर भरोसा है!’

वह सैनिक मार्च 2024 से ही मोर्चे पर था। वह कुत्ता उन सैनिकों के साथ ही ट्रेंच में रहा और सुकून से उसके संकरे प्रवेश द्वार पर नाक टिकाकर सोया। छह दिनों तक कुत्ता सैनिकों के साथ रहा। सैनिक आसमान से बरसते गोलों, रॉकेटों और आत्मघाती ड्रोनों से अपने को बचते हुए मोर्चे पर आगे बढ़ते रहे।

जब भी जोर का धमाका होता, कुत्ता उनके पीछे छिप जाता। वह एक छेद से दूसरे में जाकर उन्हें अपने हावभाव से बताता कि ‘चाहे जो हो, मैं तुम्हारे साथ आ रहा हूं।’ कनाडाई को नहीं पता था कि यह एक नए मिशन की शुरुआत थी। उस यात्रा ने सैनिक को अजनबियों, दोस्तों, सहकर्मियों के साथ एक साझा लक्ष्य से जोड़ दिया।

आखिरकार कुत्ते को खतरे के क्षेत्र से बाहर निकाल लाया गया और वह यूक्रेन से बाहर कनाडा के बर्फीले मैदानों में पहुंचा, जहां एक आरामदायक नया घर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। अपने विशाल आकार के बावजूद वह बहुत ही भला प्राणी था।

वह बेचारा इंसानों के बीच चल रहे एक क्रूर संघर्ष में फंस गया था और खुद की मदद नहीं कर सकता था। लेकिन अब उसे डोनबास नाम दिया गया। हालांकि उस कनाडाई के साथी कहते रहे कि कुत्ता उसे खतरे में डाल देगा, लेकिन उसने उस पर इतना भरोसा करने वाले उस प्राणी को बचाने का जैसे प्रण ले लिया था।

उसका मिशन उस समय खत्म हो गया। लड़ाकों के लिए निकासी ट्रक उन्हें लेने आया। कनाडाई, डोनबास के साथ उसमें सवार हो गया। संयोग से वहां उसकी मुलाकात पैट्रिक लुंडीन से हुई, जो हाल ही में मानवीय सहायता प्रदान करने वाले स्वयंसेवकों पर वृत्तचित्र बनाने यूक्रेन गए थे।

पैट्रिक ने उन्हें जस्टिन ट्रेस्लेविच से मिलवाया, जो एक पोलिश वालंटियर थे और जिन्होंने रूसी आक्रमण के बाद से राहत-सामग्रियों को ले जाने के लिए पोलैंड और यूक्रेन के बीच अनगिनत यात्राएं की थीं। दिसंबर में जस्टिन ने कनाडाई को जानवरों का रेस्क्यू करने वाले एक बल्गेरियाई वालंटियर पेत्या पेत्रोवा से मिलवाया।

वह उन्हें 600 किलोमीटर दूर एक शेल्टर में ले गया, जहां जानवरों को सुरक्षित रखा जाता है। दो सप्ताह तक डोनबास शेल्टर कार्यालय में डेस्क के नीचे सोया। ग्यारह दिन बाद एक विमान कनाडा के एडमोंटन में उतरा। इसके चंद ही घंटों के बाद बर्फ से भरे मैदानों में दौड़ लगाते, पूंछ हिलाते, जीभ लपलपाते डोनबास का एक वीडियो उन तमाम लोगों तक पहुंच गया, जिन्होंने यहां तक पहुंचने में उसकी मदद की थी।

फंडा यह है कि डोनबास से सीखें जब आप मुसीबत में हों, तो सबसे भरोसेमंद व्यक्ति की पहचान करें और अपने आने वाले जीवन को अच्छे से चलाने के लिए उसके सामने आत्मसमर्पण कर दें।

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