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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column We Should Also Take The Threads Of Life And Death From Religion
32 मिनट पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
धर्म को जानने के चार तरीके बताए जाते हैं। शास्त्र से, परम्परा से, उत्सवों से और धर्मगुरुओं से। ये जो चार मार्ग हैं, इनमें धर्म के प्रति हमारी जिज्ञासा समाप्त हो जाती है और हम एक भेड़चाल का हिस्सा बन जाते हैं। लेकिन धर्म को जानने का पांचवां तरीका है- धर्म को जीना। कम लोग हैं जो ऐसा कर पाते हैं। क्योंकि धर्म यदि सैद्धांतिक रूप से जाना जाए, तो फिर वह जीवंत नहीं रहता।
हम सिर्फ एक विचारक बन जाते हैं, साधक नहीं बन पाते। महाकुम्भ भी धर्म को जानने का एक तरीका है। बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। कुछ लोगों के लिए बौद्धिक-विलास बन गया। कुछ के लिए वाणी-विलास रह गया। कुछ लोग पर्यटन-विलास करते रहे। और बाकी लोग एक-दूसरे का अनुकरण कर रहे थे। कि वो गए तो हम भी चले जाएं।
इसमें तो कोई संदेह नहीं कि मां गंगा तो उपकार करने के लिए सदैव तैयार हैं। लेकिन गंगा ने ही यह धर्म सिखाया है कि यदि जीवन-मरण के सूत्र हमने धर्म से नहीं उठाए, तो धर्म भी एक आयोजन ही बनकर रह जाएगा।