हामिद मीर7 मिनट पहले
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पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में यह कहकर कई पाकिस्तानियों को चौंका दिया कि महमूद गजनवी एक लुटेरा था।
पाकिस्तानी मंत्री ने कहा कि महमूद गजनवी ने भारत में हमले सिर्फ धन-जायदाद लूटने के लिए किए थे। मेरे जैसे अधिकांश पाकिस्तानियों को हमारी स्कूली किताबों में यही बताया और पढ़ाया गया – ‘अफगान शासक सुल्तान महमूद गजनवी हमारे ‘हीरो’ थे, जिन्होंने जनवरी 1026 में सोमनाथ में एक हिंदू मंदिर पर हमला किया था।’
पाकिस्तान में यह सवाल उठाया जा रहा है कि मुल्क ने 2012 में अपनी कम दूरी की एक बैलिस्टिक मिसाइल का नाम ‘गजनवी’ रखा था तो अब रक्षा मंत्री ने महमूद गजनवी की आलोचना क्यों की? क्या इस्लामाबाद की भारत विरोधी पुरानी सोच में कोई बदलाव आया है या फिर कुछ और बात है?
ख्वाजा मुहम्मद भारत के खिलाफ अपने तीखे बयानों के लिए जाने जाते हैं। लिहाजा, उन्होंने यह बयान भारतीयों को खुश करने के लिए तो कतई नहीं दिया है। उनका यह बयान दरअसल हाल ही में पाक-अफगान तनाव से जुड़ा है। पाकिस्तान ने हाल ही में अफगानिस्तान में हवाई हमले किए और कई पाकिस्तानी तालिबानियों को मारने का दावा किया।
पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी तालिबान को पनाहगाह मुहैया कराई है। आसिफ द्वारा महमूद गजनवी की आलोचना का एक मकसद अफगान तालिबान को सिर्फ चिढ़ाना भर हो सकता है।
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बैलिस्टिक मिसाइल ‘गजनवी’ के परीक्षण के दौरान की एक तस्वीर।
उनके बयान के बारे में अब तक पाकिस्तान सरकार की ओर से कोई आधिकारिक सफाई नहीं आई है, लेकिन अफगान सरकार के प्रवक्ता ने पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के दावे को सिरे से खारिज कर दिया है।
अफगान सरकार के प्रवक्ता ने आसिफ को गैरजिम्मेदार बताया है। हालांकि ख्वाजा मुहम्मद आसिफ के बयान ने पाकिस्तान में एक नई बहस जरूर छेड़ दी है। कई लोग उनका समर्थन कर रहे हैं तो वहीं उनकी ही पार्टी के कुछ लोग उनका विरोध भी कर रहे हैं।
पूर्व सूचना मंत्री सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद ने आसिफ को सोमनाथ के बारे में भारतीय इतिहासकार रोमिला थापर की किताब पढ़ने का सुझाव दिया है।
रोमिला थापर दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की प्रोफेसर रही हैं। थापर ने कुछ ब्रिटिश लेखकों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने (ब्रिटिश लेखकों) अपनी इतिहास की किताबों में सोमनाथ पर महमूद के हमले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, ताकि भारत के मुसलमानों और हिंदुओं के बीच गलतफहमी पैदा की जा सके।
इन ब्रिटिश लेखकों की कुछ किताबें 1857 की क्रांति के ठीक बाद प्रकाशित हुई थीं। रोमिला थापर ने अपनी किताब ‘सोमनाथ’ में लिखा है कि महमूद गजनवी द्वारा मंदिर पर हमला एक ऐतिहासिक तथ्य जरूर था, लेकिन यह कोई धार्मिक युद्ध नहीं था। उसकी सेना ने न केवल कई हिंदू राजाओं के खिलाफ बल्कि कुछ मुसलमान शासकों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी थी।
रोमिला थापर से पाकिस्तान में कई लोग असहमत हो सकते हैं, लेकिन इन दिनों सोमनाथ पर लिखी उनकी इस किताब का इस्तेमाल महमूद गजनवी के बचाव के रूप में किया जा रहा है।
अब सवाल यह है कि अगर ख्वाजा मुहम्मद आसिफ सही हैं और महमूद गजनवी एक लुटेरा था तो क्या पाकिस्तान को अपनी मिसाइल का नाम बदलना होगा?
दिलचस्प बात यह है कि कुछ अन्य पाकिस्तानी मिसाइलों के नाम भी कुछ अफगान योद्धाओं के नाम पर हैं। ‘अब्दाली मिसाइल’ का नाम अहमद शाह अब्दाली के नाम पर रखा गया है जो पानीपत की लड़ाई के लिए जाना जाता है।
एक अन्य मिसाइल ‘गोरी’ का नाम मुहम्मद गोरी के नाम पर रखा गया है, जिसने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ तराइन की लड़ाई लड़ी थी।
पाकिस्तान ने अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के नाम उन कुछ अफगान योद्धाओं के नाम पर क्यों रखे, जिन्होंने हिंदू राजाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी? इसका कारण बहुत स्पष्ट है।
पाकिस्तान यह साबित करना चाहता था कि उसका परमाणु कार्यक्रम और बैलिस्टिक मिसाइलें केवल भारत के लिए हैं। ऐसा करके पाकिस्तान अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से बचने की कोशिश कर रहा था। लेकिन बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के खिलाफ अमेरिका की ओर से नवीनतम प्रतिबंध दिसंबर 2024 में लगाए गए हैं।
हम जानते हैं कि अमेरिका और अफगान तालिबान सहयोगी नहीं हैं, लेकिन इन दिनों दोनों पाकिस्तान के खिलाफ हैं।
तो क्या यह एक छिपा हुआ वरदान है?
महमूद गजनवी के खिलाफ पाकिस्तानी रक्षा मंत्री का बयान पाकिस्तानी अभिजात्य वर्ग की सोच में आ रहे एक नए बदलाव का उदाहरण है। अब सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग ने अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के अफगान नाम बदलने के लिए बंद कमरों में चर्चा शुरू कर दी है।
बेशक, वे भारत को खुश करना नहीं चाहते, लेकिन नाम बदलने को लेकर बहस की शुरुआत जरूर करना चाहते हैं। पाकिस्तानी मीडिया में यह बहस शुरू हो चुकी है, लेकिन संसद में इसकी शुरुआत होनी बाकी है। तथ्यात्मक बहस हमेशा सहिष्णुता को बढ़ावा देती है, जो लोकतंत्र का सार है।
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