देवदत्त पट्टनायक5 घंटे पहले
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
देशभर में देवी दुर्गा के ऐसे अनेक मंदिर पाए जाते हैं, जहां उन्हें स्वतंत्र और स्वायत्त शक्ति के रूप में दिखाया जाता है।
साधारणतः हिंदू मंदिरों में एक से अधिक मूर्तियां होती हैं। हिंदू धर्म से अपरिचित लोगों को संभवतः यह लग सकता है कि हिंदू धर्म बहुदेववादी है। लेकिन हिंदू धर्मावलंबी मानते हैं कि ये मूर्तियां एक ही दिव्य शक्ति की विभिन्न अभिव्यक्तियां हैं, जिन्हें एक परिवार का रूप दिया गया है। यह हम शिव, विष्णु और देवी के मंदिरों में देख सकते हैं।
शिव एक वैरागी थे, जो फिर गृहस्थ बन गए। शैववाद में उनकी उपासना की जाती है। उनकी छवियों में हमेशा उनकी पत्नी पार्वती और दो पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश उनके साथ होते हैं। कार्तिकेय से हमें सुरक्षा का अनुभव होता है, जबकि गणेश हमें पोसते हैं। इस प्रकार शिव के दो पुत्र हमारी सांसारिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। दूसरी ओर शिव और पार्वती पुरुष और प्रकृति जैसे पारलौकिक विचारों के प्रतीक हैं। यह शिव का परिवार है। शिव मंदिर में प्रवेश करने पर उनकी मूर्तियों के पहले नंदी बैल की मूर्ति होती है और कभी-कभार ब्रह्म या फिर कुर्म रूपी विष्णु की मूर्ति भी होती है।
वैष्णववाद में लक्ष्मी और विष्णु को पूजा जाता है। यह अधिकतर दक्षिण भारत में देखा जाता है। विष्णु को केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर और तमिलनाडु के श्रीरंगम के मंदिरों में शेष नाग पर लेटे हुए या आंध्र प्रदेश के तिरुपति देवस्थानम में चार भुजाओं वाले खड़े विष्णु के रूप में दिखाया जाता है। हालांकि लक्ष्मी को विष्णु के साथ पूजा जाता है, उनकी मूर्ति साधारणतः दूसरे मंदिर में होती है। यह उनकी स्वायत्तता का प्रतीक है। इसके विपरीत, शिव मंदिरों में देवी की छवि मंदिर के भीतर शिव की मूर्ति के साथ होती है।
गुजरात और राजस्थान के स्वामीनारायण मंदिर अनोखे हैं, क्योंकि उनमें विष्णु और लक्ष्मी की मूर्तियां एक साथ पूजी जाती हैं। किसी भी विष्णु मंदिर में विष्णु की संतान नहीं पाई जाती हैं। वैसे देखा जाए तो एक गृहस्थ देवता के लिए यह असाधारण है। विष्णु और लक्ष्मी के चारों ओर विष्णु के वाहन गरुड़ और कभी-कभार नारद जैसे भक्त और जय तथा विजय जैसे द्वारपाल होते हैं।
साधारणतः विष्णु के बजाय उनके अवतार राम और कृष्ण पूजे जाते हैं। राम को अपनी पत्नी सीता के साथ पूजा जाता है। कभी-कभार मंदिर में उनके सेवक हनुमान और उनके अनुज लक्ष्मण भी होते हैं। कृष्ण को साधारणतः राधा के साथ पूजा जाता है।
राधा का उल्लेख तांत्रिक परंपराओं के उगम के साथ होने लगा। कई लोगों का मानना है कि कृष्ण और राधा पारलौकिक दंपती थे। लेकिन तांत्रिक परंपरा में उनका मिलन एक ऐसे संबंध का प्रतीक है, जिसकी प्रथा या नियम में कोई परिभाषा नहीं है। शिव को पार्वती और राम को सीता के पति माना जाता है। विष्णु को भी लक्ष्मी के पति माना जाता है। इसके विपरीत, कृष्ण का मामला ऐसा नहीं है।
देवी के मंदिरों में देवी को किसी साथी या अपने पति के साथ कभी नहीं दिखाया जाता है। उन्हें स्वतंत्र और स्वायत्त शख्सियत के तौर पर दिखाया जाता है। परंपरागत देवी मंदिरों में उन्हें कभी-कभार एक महिला सहचरी के साथ दिखाया जाता है। गुजरात के चामुंडा-चोटिला मंदिर और उत्तराखंड के नंदा-सुनंदा मंदिर इसके कुछ उदाहरण हैं। या उनके दोनों ओर दो पुरुष दिखाए जाते हैं। यह मान्यता है कि ये उनके पुत्र हैं – भैरव और हनुमान, या काला-भैरव और गोरा-भैरव। उन्हें बहुधा बाघ या शेर पर सवार, हाथों में कई हथियार लिए दिखाया जाता है। नववधू जैसे वस्त्र पहनने के बावजूद वे हथियार धारण करती हैं। नववधू देवी के उर्वर स्वरूप जबकि हथियार देवी के रक्षक पहलू का प्रतीक माने जाते हैं। उनके रक्षक-पुत्रों से हमें यह याद दिलाया जाता है कि देवी स्वायत्त हैं।