ट्रेन हाईजैक: अतीत से जुड़े हैं बलूच समस्या के तार:  बलूचिस्तान की समस्या का अंतिम समाधान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है – Uttar Pradesh News
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ट्रेन हाईजैक: अतीत से जुड़े हैं बलूच समस्या के तार: बलूचिस्तान की समस्या का अंतिम समाधान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है – Uttar Pradesh News

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क्वेटा से पेशावर के लिए 11 मार्च की सुबह रवाना हुई ट्रेन को अमजद यासीन चला रहे थे। ट्रेन जिसे जाफर एक्सप्रेस कहा जाता है, उसके नौ डिब्बों में कुल 426 यात्री सवार थे। इनमें से 214 यात्री सेना, फ्रंटियर कोर और पुलिस के जवान थे, जो छुटि्टयों में पंजाब औ

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जाफर एक्सप्रेस पहले भी कई बार बलूच अलगाववादियों के हमलों का शिकार हो चुकी थी, इसलिए ट्रेन में कुछ सशस्त्र गार्ड भी मौजूद थे। ड्राइवर अमजद यासीन ने अपने इंजन के लोहे के दरवाजों को अंदर से बंद कर लिया था, जिन्हें तोड़ना किसी के लिए भी मुश्किल था।

जब जाफर एक्सप्रेस बोलान जिले के मश्काफ क्षेत्र में एक सुरंग के पास पहुंची तो रेलवे ट्रैक पर एक विस्फोट हुआ। पहले ट्रेन का इंजन पटरी से उतरा और फिर पूरी ट्रेन रुक गई। लेकिन इस बार यह सिर्फ एक हमला भर नहीं था।

बलूच नेता अकबर बुग्ती। साल 2006 में इनकी हत्या की वजह से बलूचिस्तान में हालात खराब हो गए।

बलूच नेता अकबर बुग्ती। साल 2006 में इनकी हत्या की वजह से बलूचिस्तान में हालात खराब हो गए।

बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के उग्रवादियों ने ट्रेन को हाईजैक कर लिया था। कुछ ही घंटों के भीतर बीएलए ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस घटना की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली और यात्रियों को छोड़ने के बदले में सरकार से अपने कैदियों की रिहाई की मांग की।

यह पाकिस्तान के इतिहास की पहली ट्रेन हाईजैकिंग थी। जाफर एक्सप्रेस पर बीएलए के इस हमले से यह साफ हो गया कि पाकिस्तानी सरकार का बलूचिस्तान से नियंत्रण खत्म होते जा रहा है। मश्काफ क्षेत्र मीडिया की पहुंच से दूर था। हमें जो जानकारी मिल रही थी, वह सिर्फ बीएलए और पाकिस्तानी सेना के बयानों पर आधारित थी।

शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया कि ड्राइवर अमजद यासीन गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। कुछ घंटों बाद खबर आई कि उनकी मौत हो चुकी है। बीएलए ने सभी महिलाओं और बच्चों को रिहा कर दिया था। जब ये महिलाएं, बच्चे और कुछ बुजुर्ग पांच घंटे पैदल चलकर एक गांव पहुंचे तो पाकिस्तानी प्रशासन ने गलत दावा किया कि उन्होंने 190 से अधिक यात्रियों को सफलतापूर्वक रिहा करवा लिया है।

बुधवार की देर शाम पाकिस्तानी सेना ने बीएलए पर जीत का दावा किया। सेना के प्रवक्ता ने कहा कि बचाव और रिकवरी अभियान पूरा हो चुका है और 33 उग्रवादी, जिनमें तीन फिदायीन हमलावर शामिल थे, ड्रोन और स्नाइपर्स के हमले में मारे गए। इस हमले में 21 यात्री और चार सुरक्षाकर्मी भी मारे गए।

बीएलए और सेना दोनों ने ड्राइवर अमजद की मौत की पुष्टि की थी, लेकिन आखिर में वे जाफर एक्सप्रेस के इंजन में सही-सलामत पाए गए। अमजद की कहानी यह साबित करती है कि बीएलए और पाकिस्तानी सेना दोनों ही कितने झूठे दावे रहे थे।

बीएलए के इस हमले ने न केवल पूरे पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ को भी इस आतंकवादी घटना की निंदा करने के लिए मजबूर कर दिया। पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि ट्रेन हाईजैकिंग की योजना अफगानिस्तान में छिपे बीएलए नेताओं द्वारा बनाई गई थी और उग्रवादी सैटेलाइट फोन के जरिए अपने नेताओं से संपर्क कर रहे थे। कई सरकारी अधिकारियों ने इस हमले के पीछे भारत का हाथ होने का आरोप भी लगाया।

27 साल पहले बलूच स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (बीएसओ) ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के एक फॉकर विमान को हाईजैक कर लिया था, जो ग्वादर से कराची जा रहा था। यह मई 1998 में पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों से ठीक पहले हुआ था।

बलूच हाईजैकर्स पाकिस्तान को बलूचिस्तान में परमाणु परीक्षण करने से रोकना चाहते थे। उन्होंने विमान के कप्तान उजैर खान को इसे भारत के गुजरात राज्य में स्थित भुज हवाई अड्डे पर उतारने को कहा था। लेकिन होशियार कप्तान ने पाकिस्तान के हैदराबाद एयरपोर्ट पर ही लैंडिंग कर दी। इसके बाद पुलिस ने एक छोटे से ऑपरेशन में तीनों बलूच हाईजैकर्स को गिरफ्तार कर लिया और बाद में उन्हें फांसी दे दी गई। आखिरकार पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के पहाड़ों में अपने परमाणु परीक्षण किए, लेकिन बलूचिस्तान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अख्तर मेंगल ने इन परीक्षणों का विरोध किया। बाद में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। अख्तर मेंगल को हटाने से कई युवा नाराज हो गए और उन्होंने उग्रवादी संगठनों का रुख कर लिया।

बलूचिस्तान में सैन्य अभियानों का इतिहास 1916 से शुरू होता है। कुख्यात कर्नल डायर जिसने 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड का आदेश दिया था, ने ही 1916 में बलूच अलगाववादियों के खिलाफ पहला सैन्य अभियान चलाया था। कर्नल डायर ने इस अभियान का विवरण अपनी पुस्तक ‘रेडर्स ऑफ सरहद’ में दिया है। उस समय बलूच विद्रोही एक स्वतंत्र बलूचिस्तान के लिए लड़ रहे थे।

बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि जब 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बना, तब बलूचिस्तान उसका हिस्सा नहीं था। ब्रिटिश बलूचिस्तान को जनजातीय क्षेत्रों और कुछ स्वतंत्र रियासतों में विभाजित किया गया था। अकबर बुग्ती जैसे जनजातीय सरदारों ने पाकिस्तान से जुड़ने का फैसला किया।

लसबेला, मकरान और खारान रियासतों ने पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी, लेकिन सबसे बड़ी रियासत ‘कलात’ ने आजाद रहने का फैसला किया। मार्च 1948 में कलात पाकिस्तान में शामिल हो गया, लेकिन इस विलय का शाही परिवार के भीतर ही विरोध शुरू हो गया।

कलात के राजकुमार करीम ने इस विलय के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसके कारण 1948 में बलूचिस्तान में पहला सैन्य अभियान चलाया गया। इसके बाद बलूचिस्तान ने पांच सैन्य अभियानों का सामना किया (1958, 1962, 1973, 2005, 2024)।

बलूचिस्तान को 1970 में एक प्रांत का दर्जा मिला, लेकिन उनकी पहली निर्वाचित सरकार को 1973 में बर्खास्त कर दिया गया। उसके बाद से बलूचिस्तान में कभी भी सही मायने में लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पाई।

शुरुआत में बलूच जनता केवल 1973 के संविधान के तहत अपने कुछ अधिकार चाहती थी, लेकिन 2006 में बलूच नेता अकबर बुग्ती की हत्या ने पूरे हालात को बदल दिया। अब चार से अधिक उग्रवादी संगठन आजादी के लिए लड़ रहे हैं। वे ग्वादर पोर्ट को चीन को सौंपे जाने का विरोध करते हैं। उनके स्वतंत्र बलूचिस्तान के नक्शे में पाकिस्तान के अलावा ईरान और अफगानिस्तान के बलूच क्षेत्र भी शामिल हैं।

बलूचिस्तान में गुस्से की असली वजह 2024 के फर्जी चुनाव के जरिए प्रांतीय सरकार पर थोपे गए नकली नेताओं के प्रति नफरत है। इतिहास गवाह है कि बंदूकें कोई समाधान नहीं होतीं। बलूचिस्तान की समस्या का अंतिम समाधान एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है।

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