रसरंग में मेरे हिस्से के किस्से:  जब रफी साहब ने गाने की फीस आशीर्वाद बतौर राज कपूर के बेटे के सिरहाने रख दीथी
अअनुबंधित

रसरंग में मेरे हिस्से के किस्से: जब रफी साहब ने गाने की फीस आशीर्वाद बतौर राज कपूर के बेटे के सिरहाने रख दीथी

Spread the love


रूमी जाफरी1 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
बीती 24 दिसंबर को मोहम्मद रफी की सौवीं सालगिरह थी। रफी
साहब का जन्म आज से सौ साल पहले 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के
कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। - Dainik Bhaskar

बीती 24 दिसंबर को मोहम्मद रफी की सौवीं सालगिरह थी। रफी साहब का जन्म आज से सौ साल पहले 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था।

बीते हफ्ते यानी 24 दिसंबर को सुरों के बादशाह और फिल्म इंडस्ट्री के फरिश्ते कहे जाने वाले मोहम्मद रफी साहब की सौवीं सालगिरह थी। तो मैंने सोचा कि इस बार मेरे हिस्से के किस्से में उनके बारे में जरूर कुछ लिखना चाहिए। जब मैं सोचने बैठा तो बहुत सारे लोग जैसे लक्ष्मीकांत जी, धर्मेंद्र जी, सचिन पिलगांवकर जी, सुभाष घई जी, अमिताभ बच्चन जी, उदित नारायण द्वारा मोहम्मद रफी के बारे में बताई गईं कई बातें मेरे जहन में घूमने लगीं। हर इंसान रफी साहब का मुरीद रहा है। जो उनसे रूबरू मिला, वह तो था ही, जो न भी मिला, वो भी उनके गानों के जरिए उनका बड़ा प्रशंसक रहा है। लोग उनको बेपनाह चाहते हैं, उनकी आवाज के दीवाने हैं। सारे फिल्ममेकर और हीरो रफी साहब के जाने के बाद भी रफी साहब को ही ढूंढ़ते रहे हैं।

एक बार धरम जी ने मुझे बताया था कि उनका पहला गाना ‘जाने क्या ढूंढ़ती रहती हैं ये आंखें मुझमें, राख के ढेर में न शोला है न चिंगारी’, रफी साहब ने ही गाया था। उनकी खासियत थी कि वो हर एक्टर की आवाज, डायलॉग डिलीवरी, उसके बोलने का स्टाइल, बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के एक्सप्रेशन को समझकर गाना गाते थे। इससे ऐसा लगता था कि खुद एक्टर ही गा रहा है। वो आवाज पर जो एक्सप्रेशंस देते थे, उससे एक्टर को एक्सप्रेशंस पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। उसका बहुत सारा काम रफी साहब अपनी आवाज से ही कर देते थे।

जब धरम जी ने सनी को लॉन्च करने का मन बनाया और फिल्म शुरू की ‘बेताब’ तो उन्होंने रफी साहब की आवाज की तलाश करनी शुरू की। उसी आवाज को तलाशते-तलाशते धरम जी को शब्बीर कुमार मिले और इस तरह उन्हें ब्रेक मिला। फिर उनकी आवाज में गाने वाले मोहम्मद अजीज मिले। उनसे भी गाने गवाए गए।

मुझे याद है कि जब ‘बरसात’ फिल्म बन रही थी, उसी दौरान मेरी फिल्म ‘आजमाइश’ भी बन रही थी। उसमें सोनू निगम ने गाने गाए थे। धरम जी ने बरसात में बॉबी देओल को लॉन्च किया था। उसमें फिर रफी साहब की तर्ज पर ही सोनू निगम से गाने गवाए गए। उसके बाद जब ‘यमला पगला दीवाना’ बनाई गई तो उसमें रफी साहब का गाना लिया गया – ‘मैं जट यमला पगला दीवाना’। इसको भी री-रिकॉर्ड कराया गया और रफी साहब से मिलती-जुलती आवाज के कारण सोनू निगम से ही गवाया गया। वो गाना भी सुपरहिट हुआ।

मुझे सुभाष घई जी ने बताया था कि वो जब भी कोई गाना बनाते हैं तो उन्हें भी रफी साहब की ही तलाश रहती है। वो भी यही सोचते हैं कि रफी साहब जैसी आवाज, वैसे ही एक्सप्रेशन, वैसी ही बात आनी चाहिए। उन्होंने बताया कि जब मैंने ‘कर्मा’ का टाइटल ट्रैक बनाया तो यही सोचकर बनाता था कि रफी साहब जैसा ही बनाया जाए। मैं यही सोचता था कि अगर इस गीत को रफी साहब गाते तो कैसे गाते। फिर मैंने वही गाना मोहम्मद अजीज से गवाया। ‘विधाता’ में दिलीप कुमार और शम्मी कपूर का गाना था – ‘हाथों की चंद लकीरों का…’ । उसे मैंने सुरेश वाडकर के साथ अनवर से गवाया, क्योंकि अनवर की आवाज भी रफी साहब से मिलती थी। फिर परदेस और ताल फिल्मों में सोनू निगम से गवाया। घई साहब ने मुझसे कहा था, रिकॉर्डिंग से पहले मैं हर सिंगर को यही ब्रीफ देता था कि तुम आंख बंद करके यही सोचना कि इस गाने को रफी साहब कैसा गाते। इन सब सिंगर्स ने मेरे गाने बहुत अच्छे गाए और सारे गाने सुपरहिट हुए।

मुझे शम्मी कपूर जी का सुनाया हुआ एक किस्सा भी याद आ रहा है। वो रफी साहब के साथ हर रिकॉर्डिंग पर होते थे। वो रफी साहब को बताते थे कि इस गाने में क्या करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि आप इस गाने का मुखड़ा और अंतरा एक सांस में गा दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। रफी साहब ने कहा- ठीक है कोशिश करता हूं और वो गाना उन्होंने एक सांस में मुखड़ा और एक सांस में अंतरे के साथ ही गाया। वो गाना था – ‘दिल के झरोखों में तुझको बैठाकर, यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर’। ये गाना था ‘ब्रह्मचारी’ फिल्म का। इसी बात पर मुझे आसी उल्दनी का एक शेर याद आ रहा है –

सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज के साथ

जैसे शम्मी कपूर की आवाज रफी साहब थे, उसी तरह राज कपूर की आवाज मुकेश जी थे। हालांकि रफी साहब ने ‘बरसात’ फिल्म में राज कपूर के लिए बहुत ही सुपरहिट और अच्छा गाना गाया था। गाना था – ‘मैं जिंदगी में हर दम रोता ही रहा हूं’। मगर राज साहब कहते थे कि मेरे चेहरे को मुकेश की आवाज ही सूट करती है। फिर एक वक़्त आया, जब संगम बन रही थी। राजेंद्र कुमार के पसंदीदा गायक रफी साहब थे और राज कपूर ने भी कहा कि मेरे प्लेबैक और राजेंद्र कुमार के प्लेबैक में आवाजें अलग-अलग होनी चाहिए, तभी वो ठीक रहेगा। जब उन्होंने रफी साहब को बुलाया। रफी साहब ने गाया- ‘मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना, तुम मेरी जिंदगी हो, तुम मेरी बंदगी हो।’ गाने की रिकॉर्डिंग खत्म हुई तो प्रोडक्शन वाला रफी साहब के पास आया और उन्हें गाने की फीस बतौर राज कपूर द्वारा दिए गए रुपए से भरा एक लिफाफा दे दिया। रफी साहब ने पूछा कि राज साहब कहां हैं तो उस प्रोडक्शन वाले ने बताया कि उनके बेटे को बुखार है। उसकी तबीयत ठीक नहीं है। तो वो घर चले गए हैं।

इस पर रफी साहब अपनी कार में बैठे और सीधे राज साहब के बंगले पर पहुंच गए। राज कपूर और कृष्णा जी हैरान रह गए कि अचानक रफी साहब कैसे आ गए। राज साहब ने पूछा कि रफी साहब आप यहां कैसे? तो रफी साहब ने कहा कि मुझे खबर मिली कि आपके साहबजादे राजीव को बुखार है तो मैंने सोचा कि मैं भी जाकर देख लूं। उस वक्त राजीव डेढ़-दो साल के ही थे। रफी साहब कमरे में गए, राजीव को देखा, अपनी जेब में से रुपए का लिफाफा निकाला और राजीव के सिरहाने तकिये के नीचे रख दिया। राज जी ने पूछा कि ये आप क्या कर रहे हैं? तो रफी साहब बोले सदका है राजीव की सेहत के लिए। खुदा इसको सेहत अता फरमाएं।

तो ऐसे फरिश्ते थे रफी साहब। आज रफी साहब की याद में फिल्म ‘कश्मीर की कली’ का ये गीत सुनिए, अपना खयाल रखिए और खुश रहिए।

तारीफ करूं क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया…

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *